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[ प्रथम परिच्छेद
जैसे - जहाँ अग्नि का अभाव होता है वहाँ धूम का अभाव होता है; जैसे तालाब |
विवेचन - व्याप्ति को जिस स्थान पर दिखाया जाय वह स्थान दृष्टान्त है | अन्वयव्याप्ति को दिखाने का स्थल साधर्म्य दृष्टान्त या अन्वय दृष्टान्त कहलाता है, जैसे ऊपर के उदाहरण में 'रसोईघर' । रसोईघर में साधन (धूम) के होने पर साध्य (अग्नि) का सद्भाव दिखाया गया है । व्यतिरेक व्याप्ति को बताने का स्थान वैधर्म्य या व्यतिरेक दृष्टान्त कहलाता है, जैसे ऊपर के उदाहरण में ' तालाब' | तालाब में साध्य के अभाव में साधन का अभाव दिखाया गया है ।
किसके सद्भाव में किसका सद्भाव होता है और किसके अभाव में किसका अभाव होता है, यह ध्यान में रखना चाहिये ।
उपनय
हेतोः साध्यधर्मिण्युपसंहरणमुपनयः || ४६ || यथा - धूमश्वात्र प्रदेशे ॥ ५० ॥
अर्थ - पक्ष में हेतु का उपसंहार करना ( दोहराना) उपनय है । जैसे - इस जगह भी धूम है ।
विवेचन – पहले हेतु का प्रयोग करके पक्ष में हेतु का सद्भाव दिखा दिया जाता है, फिर व्याप्ति और उदाहरण बोलने के पश्चात् दूसरी बार कहा जाता है - ' इस जगह भी धूम है ।' यही पक्ष में हेतु का दोहराना है और यही उपनय है ।
निगमन
साध्यधर्मस्य पुनर्निगमनम् ॥ ५१ ॥