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प्रमाण -नय-तत्वालोक ] (४४)
(एक महानस तक ही सीमित रहता है) उसमें व्याप्ति पूर्ण रूप से नहीं घट सकती अतएव दृष्टान्त में व्याप्ति सम्बन्धी विवाद उपस्थित होने पर दूसरा दृष्टान्त ढूंढना पड़ेगा, इस प्रकार अनवस्था दोष अनिवार्य होगा ||
दृष्टान्त, अविनाभाव के स्मरण के लिए भी नहीं हो सकता, क्योंकि जिसने अविनाभाव सम्बन्ध जान लिया है और जो बुद्धिमान् है, उसके आगे पक्ष और हेतु का प्रयोग करने से ही उसे श्रविनाभाव का स्मरण हो जाता है |
विवेचन - दृष्टान्त को अनुमान का अवयव मानने के तीन प्रयोजन हो सकते हैं । ( १ ) दूसरे को साध्य का ज्ञान कराना । (२) अविनाभाव का निर्णय कराना और ( ३ ) अविनाभाव का स्मरण कराना । किन्तु इनमें से किसी भी प्रयोजन के लिए दृष्टान्त की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि पक्ष और हेतु का कथन करने से साध्य का ज्ञान हो जाता है, तर्क प्रमाण से अविनाभाव का निर्णय होजाता है और पक्ष हेतु के कथन से ही अविनाभाव का स्मरण होजाता है !
इसके अतिरिक्त जो दृष्टान्त से अविनाभाव का निर्णय होना मानते हैं, उन्हें अनवस्था दोष का सामना करना पड़ेगा | पक्ष में अविनाभाव का निर्णय करने के लिए दृष्टान्त चाहिए तो दृष्टान्त में अविनाभाव का निर्णय करने के लिए एक नया दृष्टान्त चाहिए, उसमें भी अविनाभाव का निर्णय किसी नये दृष्टान्त से होगा, इस प्रकार अनवस्था दोष आयगा । क्योंकि दृष्टान्त एक विशेष स्वभाव वाला होता है अर्थात् वह एक ही स्थान तक सीमित होता है जब कि व्याप्ति सामान्य रूप है अर्थात् त्रिकाल और त्रिलोक सम्बन्धी होती है । ऐसे दृष्टान्त में पूर्ण रूपेण व्याप्ति नहीं घट सकती ।