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[ प्रथम परिच्छेद
द्वारा हो चुका था, उसमें विशेष का निश्चय हो जाना अवाय है । जैसे - 'यह मनुष्य दक्षिणी ही है ।'
धारणा का स्वरूप
स एव दृढ़तावस्थापन्नो धारणा ॥
१० ॥
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अर्थ — अवाय ज्ञान जब अत्यन्त दृढ़ हो जाता है तब वही अवाय, धारणा कहलाता है ।
विवेचन- - धारणा का अर्थ संस्कार है । हृदय - पटल पर यह ज्ञान इस प्रकार अंकित हो जाता है कि कालान्तर में भी वह जागृत हो सकता है । इसी ज्ञान से स्मरण होता है ।
हा और संशय का अन्तर
संशयपूर्वकत्वादीहायाः संशयाद् भेदः ॥ ११ ॥
अर्थ - ईहा ज्ञान संशयपूर्वक होता है अतः वह संशय से भिन्न है ।
विवेचन - ईहा ज्ञान में विशेष का निश्चय नहीं होता और संशय भी अनिश्चयात्मक है, ऐसी अवस्था में दोनों में क्या भेद है ? इस प्रश्न का समाधान यहाँ यह किया गया है कि संशय पहले होता है और ईहा बाद में उत्पन्न होती है अतएव दोनों भिन्न २ हैं । इसके अतिरिक्त
संशय में दोनों पलड़े बराबर होते हैं - दक्षिणी और पश्चिमी की दोनों कोटियाँ तुल्य बल वाली होती हैं; ईहा में एक पलड़ा भारी