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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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पड़ेंगे। कई लोग प्रत्यभिज्ञान को स्वतन्त्र प्रमाण नहीं मानते, पर एकता
और सदृशता दूसरे किसी भी प्रमाण से नहीं जानी जाती, अतएव उसे पृथक प्रमाण मानना चाहिए ।
तर्क का लक्षण
उपलम्भानुपलम्भसम्भवं, त्रिकालीकलितसाध्यसाधनसम्बन्धाद्यालम्बनं, 'इदमस्मिन् सत्येव भवति' इत्याद्याकारं संवेदनमूहापरनामा तर्कः ॥७॥
यथा यावान् कश्चिद् धूमः स सर्वो वह्नौ सत्येव भवतीति; तस्मिन्नसत्यसौ न भवत्येवेति ॥८॥
अर्थ-उपलम्भ और अनुपलम्भ से होने वाला, तीन काल सम्बन्धी व्याप्ति को जानने वाला, 'यह इसके होने पर ही होता है' इत्यादि आकारवाला ज्ञान तर्क है । ऊहा उसका दूसरा नाम है ॥
जैसे-जितना भी धूम होता है वह सब अग्नि के होने पर ही होता है, अग्नि के अभाव में धूम नहीं होता।
विवेचन-जहाँ २ धूम होता है वहाँ २ अग्नि होती है। इस प्रकार के अविनाभाव सम्बन्ध को व्याप्ति कहते हैं। यह अविनाभाव सम्बन्ध तीनों कालों के लिये होता है । जिस ज्ञान से इस सम्बन्ध का निर्णय होता है उसे तर्क कहते हैं । तर्क ज्ञान उपलम्भ और अनुपलम्भ से उत्पन्न होता है। धूम और अग्नि को एक साथ देखना उपलम्भ है और अग्नि के अभाव में धूम का अभाव जानना अनुपलम्भ है। बार-बार उपलम्भ और बार-बार अनुपलम्भ होने से व्याप्ति का ज्ञान (तर्क) उत्पन्न हो जाता है।