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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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कारण है और मनःपर्यायज्ञानावरण का क्षयोपशम अन्तरंग कारण है। इन दोनों कारणों के मिलने पर उत्पन्न होने वाला तथा संज्ञी जीवों के मन की बात जानने वाला ज्ञान मनःपर्याय कहलाता है।
सकल प्रत्यक्ष का स्वरूप
सकलं तु सामग्रीविशेषतः समुद्भूतं समस्तावरणक्षयापेक्षं. निखिलद्रव्यपर्यायसाक्षात्कारिस्वरूपं केवलज्ञानम् ॥२३॥
अर्थ-सम्यग्दर्शन आदि अन्तरंग सामग्री और तपश्चर्या आदि बाह्य सामग्री से समस्त घाति कर्मों का क्षय होने पर उत्पन्न होने वाला तथा समस्त द्रव्यों और समस्त पर्यायों को प्रत्यक्षं करने वाला केवलज्ञान सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहलाता है।
विवेचन-यहाँ भी मकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष के उत्पादक कारण और उसके विषय का उल्लेख करके उसका स्वरूप समझाया गया है । जब केवलज्ञान की बाह्य और अन्तरंग सामग्री प्रस्तुत होती है और चारों घातिया कर्मों का क्षय-पूर्ण रूपेण विनाश हो जाता है तब यह ज्ञान उत्पन्न होता है । यह ज्ञान सब द्रव्यों को और उनकी त्रैकालिक सब पर्यायों को युगपत् जानता है । यह ज्ञान प्राप्त करने वाला महापुरुष केवली या सर्वज्ञ कहलाता है । यह ज्ञान क्षायिक है, शेष सब क्षायोपशमिक ।
मीमांसक मत वाले सर्वज्ञ नहीं मानते । इस सूत्र में उनके मत का विरोध किया गया है।