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अण्णासो संधि
२३.
जल, स्थल या आकाशमें कहीं भी तुम रहो, तुम जैसे जीणं वृक्षों पर प्रक्षिप्त शीघ्र प्रदीप्त लक्ष्मणरूपी आग लग कर रहेगी | ॥१-८॥
[4] इसी समय, रणभारमें भीषण, विभीषणने भी अपना सन्देश दिया - "रावणसे जाकर कहना कि तुमने जो भी भयंकर छल किये हैं, उनका फल तुम्हें खाऊँगा । तुम्हारे जिस हाथने चन्द्रहास तलवार प्राप्त की, जिस हाथने शत्रओं का विनाश किया है, जिस हाथने याचकोंको दान दिया जिन हा दिवा जिन हाथने 'जय' अर्जित की, जिन हाथोंने इन्द्रको बन्दी बनाया, जिन हाथोंसे तुम्हें कामदेव उपलब्ध हुआ, जिन हाथोंने वरुणको भंग किया, जिन हार्मोने रामकी पत्नीका अपहरण किया, ठीक उसी प्रकार जैसे वनमें सिंह हिरनीका अपहरण कर ले, लगता है अब उन हाथोंका प्रलय काल आ गया है। मैं उन हाथोंको कमलनालकी भाँति उखाड़ फेकूँगा ।" विभीषणने अपने सन्देश में यह विशेष बात भी कही"उसे ( रावणको ) बता देना कि तुम्हें यमके शासन में भेज दिया जायगा, और श्री राघवके सहयोगसे कल लंका नगरी मेरे अधीन हो जायगी । ” ।। १-२ ।।
[६] उसके बाद, किष्किन्धा नरेशने भी मत्सरसे भरकर अपना सन्देश देना प्रारम्भ किया, "जाकर रावणसे पूछना कि कल कौन सा महोत्सव है, सुग्रीव कल युद्धके आँगन में हो भोज देगा, दुर्दर्शनीय तीखे तीर उस भोजनमें भात होंगे। कर्णिका और खुरुप अस्त्रोंसे मैं पहला कौर ग्रहण करूँगा । छोड़ा गया एक चक्र उस भोजनमें घृतधाराका काम देगा । सर, झसर और शक्ति (अस्त्र) उसमें सालनका स्वाद देंगे 1 तीरिय और तोमर मिष्ठान्न के संघात होंगे। मुद्गर और
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