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अढवण्यासमो संधि छोड़ दी। उन्होंने फिर अपना सन्देश दिया-"जाकर उस रावणसे कहना कि दशमुखरूपी हाथीपर रामरूपी सिंह आक्रमण करेगा । उस दशमुख गजके गाल आर्द्र हैं । कुम्भकर्ण उसकी उरण्ड सुंदके समान है, हरन और पदमा उसके विषम दाँत हैं। मन्त्री सुत सारण बजते हुए घण्टारवके समान है। इधर रामरूपी सिंह भी कम नहीं है । हनुमान उसकी जीभ है, कुन्द और इन्द्र कर्ण तथा लक्ष्मण उसका शरीर है। गवय और गवाल उसके विस्फारित नेत्र हैं । नल और नील उसकी दो भयंकर दाद हैं। वह रामरूपी सिंह एकदम भयंकर है। जामवन्त और भामण्डल उसकी अयालकी भाँति है। अंग और अंगद तार, मुसेन, उसके नख हैं। उसकी पूंछके बाल है, पीछे लगी हुई सेना । ऐसा रामरूपी सिंह निश्चय ही, निशाचररूपी हाथियोंके गण्डस्थलोंको एक ही आक्रमणमें चूर चूर कर देगा, और उससे जानकोरुपी मोती निकालकर ही रहेगा।" ॥ १-२॥
[४] तब, समराङ्गणमें अजेय लक्ष्मणने भी फौरन अपना सन्देश भेजा,-"जाकर रावणसे कहना जहाँ जहाँ कुमुद समूह है, वहाँ पर मैं तेजस्वी दिनकरके समान हूँ। यदि तुम गिरिशिखरोंकी तरह लम्बे-तडंगे हो तो मैं भी इन्द्रका वन्न हूँ । यदि तुम नागराजके विषले दाँत हो तो मैं भी भयंकर पक्षियोका राजा गरुड़ हूँ। यदि तुम गरजते हुए हाथी हो तो मैं बहुमायावी मृगेन्द्र हूँ| यदि तुम आग हो तो मैं समुद्र समूह हूँ। यदि तुम महामेघ हो तो मैं प्रलयपवन हूँ । यदि तुम उद्भट हो, तो निश्चय ही अपना विनाश समझो। यदि तुम 'च' शब्द हो तो मैं उसके लिए समास हूँ। यदि तुम रात हो तो मैं दिन हूँ। यदि तुम अश्व हो तो मैं महिष हूँ |