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पातञ्जल एवं जैनयोग-साधना पद्धति तथा सम्बन्धित साहित्य
का निरूपण है। सम्यक् चारित्र का विवेचन करते हुए अहिंसादि पांच महाव्रतों तथा पातञ्जलयोगसूत्र में निरूपित अष्टांगयोग की विस्तार से प्ररूपणा की गई है। ध्यान एवं ध्यान के भेदों का विस्तृत विश्लेषण इस ग्रन्थ में उपलब्ध होता है। सर्वप्रथम ज्ञानार्णव में ही पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यानों का वर्णन विस्तार से मिलता है। श्वेताम्बर- परम्परा के साहित्य में उक्त चार ध्यानों के नामों का उल्लेख नहीं है। केवल आ० हेमचन्द्र ऐसे प्रथम आचार्य हैं, जिन्होंने योगशास्त्र में इनका वर्णन किया है। ज्ञानार्णव में वर्णित सभी विषय ध्यान से संबंधित हैं। तीसरे सर्ग में ध्यान-साधक के लिए गृहस्थाश्रम के त्याग का स्पष्ट विधान है। नाड़ीशुद्धि के रूप में वर्णित पवनजय-साधना का वर्णन हठयोग के 'शिवस्वरोदय' से प्रभावित प्रतीत होता है। हठयोग में ही वर्णित धारणाओं की जैन परम्परानुकूल कल्पना 'ज्ञानार्णव' में सर्वप्रथम आ० शुभचन्द्र ने की है। जैनग्रन्थों में इससे पूर्व धारणाओं का वर्णन कहीं नहीं किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि आ० शुभचन्द्र ने स्वयं नया कुछ नहीं लिखा, तथा अपने पूर्ववर्ती दिगम्बर जैनाचार्यों की कृतियों को उद्धृत कर जैन सिद्धान्तों का संकलन मात्र कर दिया तथापि उनकी यह विशेषता है कि उन्होंने पातञ्जलयोग एवं हठयोग के अनुरूप जैनयोग का प्रतिपादन किया । ग्रन्थ में तन्त्र एवं मन्त्रयोग का भी प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।
संक्षेप में 'ज्ञानार्णव' पातञ्जलयोग के अष्टांगयोग, हठयोग, तन्त्रयोग, एवं मन्त्रयोग सभी का जैनसिद्धान्त से समन्वित रूप प्रस्तुत करता है।
इ. हेमचन्द्रसूरि
भारतभूमि में उत्पन्न बहुश्रुत पण्डितरत्नों में जैनाचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि का स्थान अग्रगण्य है। संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास को और श्रीहर्ष के दरबार में बाणभट्ट को प्राप्त था, प्रायः वही स्थान (वि० सं० ११५० - ११६६) १२वीं शताब्दी के चौलुक्यवंशी सुप्रसिद्ध गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह की राजसभा में आ० हेमचन्द्र का रहा है।
सौभाग्य से इस महान् आचार्य, सन्त, साहित्यप्रणेता व धर्मोपदेशक की जीवन विषयक सामग्री अनेक समकालीन व परवर्ती ग्रन्थों में सुलभ है। इन ग्रन्थों में सोमप्रभसूरि रचित 'कुमारपालप्रतिबोध'' (संवत् १२४१), प्रभाचन्द्रसूरिकृत 'प्रभावकचरित' (सं० १२७८), मेरुतुंगाचार्यकृत 'प्रबंधचिंतामणि'' (सं० १३६२). राजशेखरकृत 'प्रबन्धकोश (सं० १४६५), यशपाल रचित 'मोहराजपराजय' नाटक (१३वीं शताब्दी का पूर्वार्ध) एवं पुरातनप्रबंधसंग्रह '' आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त स्वयं हेमचन्द्र कृत द्वयाश्रयकाव्य, सिद्धहेमप्रशस्ति तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में अन्तर्भूत 'महावीरचरित' आदि भी उनके जीवन पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् ब्यूलर ने उक्त स्रोतों का उपयोग करते हुए हेमचन्द्र के जीवन व कृतित्व पर एक विस्तृत निबन्ध लिखा है।
प्रभावकचरित में वर्णित कथा के अनुसार आ० हेमचन्द्र का जन्म वि० सं० ११४५ को कार्तिक शुक्ल १५ तदनुसार सन् १०८८ या १०८६ के नवम्बर-दिसम्बर मास में हुआ था। इनका जन्मस्थान गुजरात प्रदेश
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कुमारपालप्रतिबोध, पृ० २१-२२
प्रभावकचरित, पृ० १८३-२१२
प्रबन्धचिन्तामणि, भाग १, पृ० ८३, ८४
प्रबन्धकोश, दसवाँ प्रबन्ध
मोहराजपराजय, प्रथम अंक
पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ० ३७
The life of Hemachandracharya, Singhi Jain Granthamala, 1936
प्रभावकचरित २२/८५०
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