________________
योग और आचार
धर्म को स्वीकार करके अन्य का अपलाप किया जा सकता | अनेकान्तवाद चिन्तन की वह शैली है, जिसके द्वारा अपेक्षाभेद से वस्तु की अनन्तधर्मात्मकता का बोध हो सकता है।
एक शब्द या वाक्य के द्वारा वस्तु के समस्त धर्मों का युगपद् कथन अशक्य होने से प्रयोजनवश कभी एक धर्म को मुख्य मानकर कथन किया जाता है, तो कभी दूसरे को । अनन्त धर्मों में से जिसका प्रतिपादन किया जाता है वह मुख्य होता है, शेष सभी गौण होते हैं। मुख्य धर्म के साथ अन्य धर्म भी गौण रूप से स्वीकृत होते रहें, उनका निषेध न हो, इस प्रयोजन से प्रत्येक वाक्य के साथ 'स्यात्' या 'कथंचित्' शब्द का प्रयोग किया जाता है।' 'स्यात्' शब्द का अर्थ है - किसी अपेक्षा से । वस्तु-तत्त्व के निर्णय में किसी अपेक्षा की प्रधानता पर आधारित वाद 'स्याद्वाद' कहलाता है।
अनेकान्तवाद और स्याद्वाद
अनेकान्तवाद और स्याद्वाद का परस्पर घनिष्ट सम्बन्ध है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक के अभाव में दूसरे का कोई महत्व नहीं रह जाता। अनेकान्तवाद वस्तु के यथार्थ स्वरूप को सापेक्ष दृष्टि से चिन्तन- विचार करने की शैली है जबकि स्यादवाद वस्तु की अनेक धर्मात्मकता या अनन्तधर्मात्मकता को कहने का साधन है। इसप्रकार अनेकान्तवाद एक सिद्धान्त है तो स्यादवाद अनेकान्तवाद का निरूपण करने का वाचनिक उपाय अर्थात् शैली है । अनेकान्तवाद सापेक्ष चिन्तनशैली है और स्यादवाद निरूपणपद्धति ।
शास्त्रों में कहा गया है कि स्यादवाद का 'स्याद्' शब्द अनेकान्त द्योतक 'अव्यय' है इसलिए स्यादवाद ही अनेकान्तवाद है। नित्य और अनित्य आदि अनेक धर्मों से युक्त वस्तु का अभ्युपगम 'स्यादवाद' है। इस प्रकार स्याद्वाद और अनेकान्तवाद दोनों पर्यायवाची माने गए हैं।
स्याद्वाद का अर्थ
स्याद्वाद शब्द 'स्यात्' और 'वाद' इन दो शब्दों के मेल से बना है। उनमें 'स्यात्' शब्द अस् धातु का विधिलिंग में प्रथमपुरुष के एक वचन का रूप प्रतीत होता है, परन्तु यथार्थ में यह अव्यय है। इसके अनेक अर्थ हैं। यथा- प्रशंसा, विवाद, अस्तित्व, संशय, प्रश्न और अनेकान्त । जैनदर्शन में यह अनेकान्त के अर्थ में प्रयुक्त है । यह कथंचित् का पर्यायवाची अव्यय और अनेकान्तात्मक अर्थ का प्रतिपादक है। इसका अर्थ है किसी अपेक्षा से । 'वाद' शब्द का अर्थ है • कथन करना। इसप्रकार स्यादवाद का अर्थ हुआअपेक्षा विशेष से पदार्थ में विद्यमान (अन्य अपेक्षाओं का निराकरण किए बिना) वस्तु के स्वरूप का कथन करना | तात्पर्य यह है कि स्यादवाद सापेक्ष सिद्धान्त है। जब कोई कथन किसी वस्तु के धर्म विशेष पर आधारित होता है तो वह सापेक्ष कहलाता है। संक्षेप में वस्तुतत्त्व के निर्णय में किसी अपेक्षा की प्रधानता पर आधारित वाद 'स्यादवाद' है ।
-
137
१. जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भाग, ४, पृ. ४६७
२. लघीयस्त्रयम्, ६२ पर विवृत्ति
३.
स्यादित्यव्ययमनेकान्तद्योतकम् । ततः स्यादवादः अनेकान्तवादः नित्यानित्याद्यनेकधर्मशबलैकवस्त्वभ्युपगम इति यावत् ।
स्यादवादमञ्जरी, पृ० १५
--
(क) स्यादिति शब्दो अनेकान्तद्योतकोति प्रतिपत्तव्यो न पुनर्विधिविचारप्रश्नादिद्योती तथा विवक्षापायात् ।
४.
५.
-- अष्टसहस्री, पृ० २८६
(ख) अत्र सर्वथात्यनिषेधकोऽनेकान्तद्योतकः कथंचिदर्थे स्याच्छब्दो निपातः ।
- पंचास्तिकाय, १४ पर अमृतचन्द्रसूरि की टीका स्यात्कथंचित्विवक्षितप्रकारेणानेकांतरूपेण वदनं वादो जल्पः कथनं प्रतिपादनमिति स्याद्वादः ।
-- समयसार, तात्पर्यवृत्ति, ४१३/७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org