Book Title: Patanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Aruna Anand
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 275
________________ सिद्धि-विमर्श 257 १. जलचारण जलकायिक जीवों को कष्ट दिये बिना समुद्र के मध्य जाने तथा दौड़ने की क्षमता। २. जंघाचारण चार अंगुल प्रमाण पृथ्वी को छोड़कर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना बहुत योजनों तक गमन करने की सामर्थ्य | ३. फलचारण वनफलों में रहने वाले जीवों की विराधना न करके उनके ऊपर दौडना। ४. पुष्पचारण बहत प्रकार के फूलों में रहने वाले जीवों की विराधना न करके उनके ऊपर से दौड़ना। ५. पत्रचारण बहुत प्रकार के पत्तों में रहने वाले जीवों की विराधना न करके उनके ऊपर से गमन करना। ६. अग्निशिखाचारण अग्निशिखाओं में स्थित जीवों की विराधना न करके उन विचित्र अग्निशिखाओं से गमन करना। ७. मकड़ीतन्तुचारण' शीघ्रता से किये गये पद विक्षेप में अत्यन्त लघु होते हुए मकड़ी के तन्तुओं की पंक्ति पर से गमन करना। योगशास्त्र की स्वोपज्ञवृत्ति में चारणऋद्धि(चारणलब्धि) के उपर्युक्त भेदों के अतिरिक्त श्रेणीचारण, धूमचारण, नीहारचारण, अवश्यायचारण, मेघचारण, वारिधाराचारण, ज्योतिरश्मिचारण तथा वायुचारण आदि लब्धियों का उल्लेख भी मिलता है। (ख) आकाशगामित्व' आकाश में आने-जाने की विशिष्ट शक्ति प्राप्त होना। तपऋद्धि तपऋद्धि के ७ भेद माने गये हैं - १. घोरतप, २. महातप, ३. उग्रतप, ४. दीप्ततप, ५. तप्ततप, ६. घोरगुणब्रह्मचारिता, ७. घोरपराक्रमता। १. घोरतप सिंह, व्याघ्र, चीता, स्वापद आदि दुष्ट प्राणियों से युक्त गिरिकन्दरा + 6m 450 तिलोयपण्णति, ४/१०३६: तत्वार्थराजवार्तिक, ३/३६/३/२०३: तत्त्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६: योगशास्त्र, स्वो० वृ० १/.. पृ० ४०-४१; प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, १५०५ धवला. पुस्तक ६. पृ०७६.८१ तिलोयपण्णत्ति, ४/१०३८; तत्त्वार्थसूत्र. श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६; योगशास्त्र. स्वो० वृ० १/६. पृ० ४१; प्रवचनसारोद्धार, ६०१: धवला, पुस्तक ६. पृ०७६.८१ तिलोयपण्णशि. ४/१०३८; तत्वार्थराजवार्तिक, ३/३६/३/२०३: तत्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६: योगशास्त्र, स्वो० वृ० १/६. पृ० ४०.४१: प्रवचनसारोद्धार, ५६७-५६६: धवला, पुस्तक ६, पृ०७६.८१ ४. तिलोयपण्णति, ४/१०३६: तत्वार्थराजवार्तिक, ३/३६/३/२०३: तत्त्वार्थसूत्र. श्रुतसागरीयवृति ३/३६; योगशास्त्र, स्वो० वृ० १/६. पृ०४१: प्रवचनसारोद्धार, ६०१: धवला, पुस्तक ६, पृ०७६ तिलोयपण्णत्ति. ४/१०४०: तत्त्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६; योगशास्त्र, स्वो वृ०१/६, पृ०४१: धवला, पुस्तक ६. पृ० ७६.८१ तिलोयपण्णत्ति, ४/१०४१ ७. तिलोयपण्णत्ति ४/१०४५: तत्त्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६: योगशास्त्र, स्वो० वृ०१/८, पृ०४१ ८. योगशास्त्र. स्यो० वृत्ति १/८, पृ०४१-४२ ६. तिलोयपण्णत्ति, ४/१०३३-३४: तत्वार्थराजवार्तिक, ३/३६/३/२०२; तत्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६; योगशास्त्र, स्वो० वृ० १/६. पृ० ४१: धवला. पुस्तक ६. पृ० ८०.८४ १०. तिलोयपणणारी. ४/१०४६-५०: तत्वार्थराजवार्तिक, ३/३६/३/२०३ ११. तिलोयपणात ४/१०५५: तत्वार्थराजवार्तिक. ३/३६/३/२०३: तत्त्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीयवृत्ति ३/३६: धवला, पुस्तक ६. पृ० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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