Book Title: Patanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Aruna Anand
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 281
________________ सिद्धि-विमर्श 263 ऋद्धियों के प्रति आसक्त हो जाता है तो समस्त अनुष्ठान विष रूप हो जाता है। आ० शुभचन्द्र, हेमचन्द्र एवं उपा० यशोविजय ने भी सिद्धियों को विघ्न स्वरूप माना हैं। अतः योगी को चाहिए कि वह इनकी अपेक्षा न कर समाधि की साधना में निरन्तर उन्मुख रहे। सिद्धियों के प्रति उपेक्षाभाव रखते हुए योग-मार्ग में आगे बढ़ता हुआ साधक अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, उसका भव-सागर से सम्बन्ध छूट जाता है। यही योगी का चरम लक्ष्य है। १. २. ३. योगबिन्दु, १५५, १५६, ३६५ ज्ञानार्णव, ३७/१२-१४, ३५/२६.३६/१-१४,५/३. १३ योगशास्त्र,६/१-३,६/१५, १६ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, स्वो० वृ० १८/२४, ज्ञानसार, २०/८ Jain Education International www.jainelibrary.org | For Private & Personal Use Only

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