Book Title: Patanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Aruna Anand
Publisher: B L Institute of Indology

Previous | Next

Page 320
________________ 302 पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन ज्ञानबिन्दु (प्रकरण) ४७ ज्ञानसार (अष्टक) ६, ११, ४७, ४८, ५४, ८३ । ज्ञानानन्दभाष्य ६ ज्ञानार्णव ६, १२,२८, २६, ३२, ३३, ३६, ४७.५३, १२२, १६७, १८२, १६१, १६२, २३१, २३४, २३५, २३६. २६८, २६६, २७४ तत्त्वत्रयप्रकाशिनी १० तत्त्वविवेक ४७ तत्त्ववैशारदी ६ तत्त्वानुशासन १०, २६. ३२ तत्त्वार्थराजवार्तिक २६, २६२ तत्त्वार्थसूत्र ८, ७६, ७८, १५०, १५२. १५४, १५८, २३२ तत्त्वार्थसूत्र-लघुवृत्ति २४ तपागच्छगुर्वावली १५ तिलोयपण्णत्ती २५३ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ३३, ३७. ३८, ३६ त्रिसूत्र्यालोकविवरण ४७ दर्पदलन १३० दर्शनसप्ततिका २५ दशवैकालिकसूत्र २६२ दशवैकालिकटीका २३ दशवैकालिकवृत्ति १६८ दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि ६६ देवधर्मपरीक्षा ४७ देशीनाममाला ३८ द्वयाश्रयकाव्य ३३ द्वयाश्रयमहाकाव्य ३६, ३८, ३६ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका ११, ४७, ५४, ५७, २६२, २७१ द्वादशारनयचक्र १६ द्विजवदनचपेटा २४ धर्मपरीक्षा ४७ धर्मबिन्दु २३. १०६ धर्मलाभसिद्धि २५ धर्मसंग्रह ४१ धर्मसंग्रहणी २६ धर्मसार २५ धवलाटीका १६२, २५३ धातुपरायण ३८ धूर्ताख्यान २४ ध्यानचतुष्ट्य १२ ध्यानदीपिका ११, १२ ध्यानमाला १२ ध्यानविचार १२ ध्यानशतक ६ ध्यानशास्त्र १० ध्यानसार १२ ध्यानस्तव ११ ध्यानस्वरूप ११ नन्दीगुरु १३ नन्द्यध्ययनटीका २३ नयचक्र १७ नयरहस्य ४७ नयविलास १० नयोपदेश ४७ नवयोगकल्लोलवृत्ति ७ नाणायत्तक २५ निघण्टुशेष ३८ नियमसार ८ न्यायखण्डनखण्डखाद्यटीका ४७ न्यायदीपिका ४५ न्यायप्रवेशटीका २४ न्यायबिन्दुटीका १६ न्यायमंजरी १६, १७ न्यायविनिश्चय २५ न्यायालोक ४७ न्यायावतारवृत्ति २४ पंचनियंठी २५ पंचलिंगी २५ पंचवस्तुक २३ पचसूत्रव्याख्या २४ पंचसंग्रह २६ पंचास्तिकाय १४२ पंचाशक २४ परमात्मप्रकाश ६ परलोकसिद्धि २५ परिशिष्टपर्व ३८ पाण्डवपुराण २८ पातञ्जल-कैवल्यपाद वृत्ति ४७ पातञ्जलयोगसूत्र १, ५, ६. ७. ८. ६. १२, २६, ३३. ३६, ४५, ५०, ५१, ५५, ६१, ७७, ८१, ८.६, ६०, ६३, १११, १२३, १२४, १४५, १७०, १७७. १८२, १८३. १८४, १८६, १८८, २००, २०३. २०६. २१०, २११, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350