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सिद्धि-विमर्श
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ऋद्धियों के प्रति आसक्त हो जाता है तो समस्त अनुष्ठान विष रूप हो जाता है। आ० शुभचन्द्र, हेमचन्द्र एवं उपा० यशोविजय ने भी सिद्धियों को विघ्न स्वरूप माना हैं। अतः योगी को चाहिए कि वह इनकी अपेक्षा न कर समाधि की साधना में निरन्तर उन्मुख रहे। सिद्धियों के प्रति उपेक्षाभाव रखते हुए योग-मार्ग में आगे बढ़ता हुआ साधक अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, उसका भव-सागर से सम्बन्ध छूट जाता है। यही योगी का चरम लक्ष्य है।
१. २. ३.
योगबिन्दु, १५५, १५६, ३६५ ज्ञानार्णव, ३७/१२-१४, ३५/२६.३६/१-१४,५/३. १३ योगशास्त्र,६/१-३,६/१५, १६ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, स्वो० वृ० १८/२४, ज्ञानसार, २०/८
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