Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० स्थान में मोहनीय के बिना सात की और चारप्रकृतिक सत्त्वस्थान में चार अघातिकर्मों की सत्ता है।
अब इनके उदयसत्तासंवेध का विचार करते हैं
मोहनीयकर्म का उदय सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान पर्यन्त होता है, अतएव मोहनीय का जब उदय हो तब आठों कर्मों का उदय और सत्त्व होता है। एक भी कर्म कम नहीं होता है।
मोहनीयकर्म यह घातिकर्म है। अतएव उक्त से शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय इन तीन में से किसी भी कर्म का उदय हो तब आठ और सात कर्म उदय एवं सत्ता में होते हैं । इन तीन घातिकर्मों का उदय बारहवें गुणस्थान पर्यन्त होता है, वहाँ तक आठ और सात ये दो उदयस्थान और सत्तास्थान होते हैं। उनमें भी दसवें गुणस्थान पर्यन्त आठ का उदय और सत्त्व होता है । ग्यारहवें गुणस्थान में सात का उदय एवं आठ की सत्ता तथा बारहवें गुणस्थान में सात का उदय और सात का सत्त्व होता है।
वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र में से किसी भी अधातिकर्म का उदय होने पर आठ, सात और बार इन तीन में से कोई भी स्थान उदय और सत्ता में होता है। अघातिकर्मों का उदय चौदहवें गुणस्थान पर्यन्त होता है, वहाँ तक उक्त तीन उदयस्थान संभव हैं। उनमें से दसवें गुणस्थान पर्यन्त आठ का उदय और सत्त्व, ग्यारहवें में सात का उदय एवं आठ का सत्त्व, बारहवें में मोहनीय के बिना सात का उदय तथा सात का सत्त्व एवं तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान में घातिचतुष्क सिवाय शेष चार अघातिकर्म का उदय और सत्त्व होता है।
इस प्रकार उदय का उदय तथा सत्ता के साथ संवेध जानना चाहिये । अब उदय और सत्ता के साथ सत्ता के संवेध का विचार करते हैं
मोहनीयकर्म की जहाँ तक स! होती है वहाँ तक उदय आठ अथवा सात कर्मों का होता है। यह इस प्रकार--सूक्ष्मसंपरायगुण
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