Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७८
१४७ जीवों के इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है-'इगवीसो पुण उदओ .........."सव्वजीवाणं ।'
इस प्रकार से गुणस्थानों में नामकर्म के उदयस्थानों की संभवता को जानना चाहिये । अब तिर्यचगति आदि में उनका विचार करते हैं। तिर्यंच और मनुष्यों में नामकर्म के उदयस्थान
चउवीसाई चउरो उदया एंगिदिएसु तिरिमणुए।
अडवीसाइ छव्वीसा एक्केक्कूणा विउव्वति ॥७॥ शब्दार्थ-चउवीसाई-चौबीस प्रकृतिक आदि, चउरो-चार, उदयाउदयस्थान, एगिदिएसु-एकेन्द्रियों में, तिरिमणुए-तिर्यंच और मनुष्यों में, अडवीसाइ-अट्ठाईस प्रकृतिक आदि, छन्वीसा-छब्बीस प्रकृतिक, एक्केक्कूणा-एक-एक प्रकृति द्वारा न्यून, विउव्वंति-वैक्रिय शरीर करते ।
गाथार्थ-एकेन्द्रियों में चौबीस प्रकृतिक आदि चार उदयस्थान होते हैं । तिर्यच और मनुष्यों में अट्ठाईस प्रकृतिक आदि चार एवं छब्बीस प्रकृतिक कुल पांच उदयस्थान होते हैं तथा वैक्रिय शरीर करते उनमें एक-एक प्रकृति द्वारा न्यून पांच उदयस्थान होते हैं। विशेषार्थ-तिर्यंच गति में नाम कर्म के उदयस्थानों का निरूपण एकेन्द्रिय जीवों से प्रारंभ किया है। क्योंकि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीव तिर्यंच गति वाले होते हैं। एकेन्द्रियों में चौबीस, पच्चीस, छब्बीस और सत्ताईस प्रकृति रूप चार उदयस्थान होते हैं तथा पूर्व में यह कहा गया है कि भवान्तर में जाते सभी जीवों के इक्कीस प्रकृतियों का उदय होता है । इसलिये इन चार उदयस्थानों के साथ उस अनुक्त इक्कीस प्रकृति रूप उदयस्थान को मिलाने पर पांच उदयस्थान एकेन्द्रिय जीवों में जानना चाहिये। इसी प्रकार से द्वीन्द्रिय आदि अन्य जीवों के लिये भी इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान का ग्रहण समझना चाहिये।
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