Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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०प्र.
भाषा पर्याप्त
स्वर सहित २६ प्रकृति
सुस्वर, दुःस्वर यश. अय. २
२ यश. अयश.द्वारा
३० प्र.
उद्योत सहित २६ प्र. स्वर से पूर्व
उच्छ्वास पर्याप्त
सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ११
१ प्र.
उद्योत सहित ३० प्रकृति
|
यश. अय. स्वर द्विक_ २-X २
-=४
=४
भाषा पर्याप्त
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इसी प्रकार से त्रीन्द्रिय के २२, चतुरिन्द्रिय के २२ कुल मिलाकर विकले न्द्रियों के ६६ भंग होते हैं।
सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय उदयस्थान भंग (४६०६)
सामान्य मनुष्य उदयस्थान भंग (२६०२) मनुष्य को उद्योत संबन्धी मंग नहीं होते।
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