Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १०
परिशिष्ट १४ : दिगम्बर सप्ततिकानुसार चौदह जीवस्थानों
में मूल प्रकृतियों के बंध-उदय-सत्त्व स्थान
आदि के तेरह जीवस्थानों (एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त से संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त पर्यन्त) में सात प्रकृतिक बंधस्थान, आठ प्रकृतिक उदयस्थान और आठ प्रकृतिक सत्त्वस्थान तथा आठ प्रकृतिक बंधस्थान, आठ प्रकृतिक उदयस्थान और आठ प्रकृतिक सत्त्वस्थान ये दो भंग होते हैं तथा चौदहवें संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में पांच भंग होते हैं । जो इस प्रकार हैं
१. आठ का बंध, आठ का उदय, आठ का सत्त्व । २. सात का बंध, आठ का उदय, आठ का सत्त्व । ३. छह का बंध, सात का उदय, आठ का सत्त्व । ४. एक का बंध, सात का उदय, आठ का सत्त्व । ५. एक का बंध, सात का उदय, सात का सत्त्व ।
सयोगि केवली में एक (साता वेदनीय) का बंध, चार (अघाति चतुष्क) का उदय व सत्त्व तथा इसी प्रकार अयोगिकेवली में अबंध तथा चार प्रकृतियों उदय और सत्त्व होता है।
संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में केवली भगवान भी गभित हैं। लेकिन उनकी विशेष स्थिति होने से पृथक् उल्लेख किया है।
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