Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२५
२४५
गाथार्थ - उदयभंगों को जानने के लिये चौबीसियों का और पदों की संख्या के लिये ध्रुवकों का योगादि से गुणा कर और फिर उन सबको जोड़कर उन्हें चौबीस से गुणा करने एवं इतर संख्या मिलाने पर भंग और पद संख्या प्राप्त होती है ।
विशेषार्थ - योग, उपयोग और लेश्या द्वारा होने वाली मोहनीय कर्म के उदयभंगों को संख्या प्राप्त करने के लिये जिस-जिस गुणस्थान में जितनी चौबीसी होती हैं, उनका उस उस गुणस्थान में संभव योग, उपयोग या लेश्याओं के साथ गुणाकार करके प्राप्त गुणनफल को चौबीस से गुणा करें - ' जोगमाईहि गुणिया । तत्पश्चात् दो और एक के उदय से होने वाले सत्रह भंगों को नौ योग, सात उपयोग और एक लेश्या से गुणा कर प्राप्त संख्या को पूर्व की संख्या में मिलायें और योग द्वारा होने वाली भंगों की संख्या में से पूर्व में कहे गये असंभव भंगों को कम करने पर योग द्वारा होने वाली भंग संख्या प्राप्त होती है । किन्तु लेश्या और उपयोग द्वारा होने वाली भंग संख्या में से उनके असंभव भंग नहीं होने से एक भी भंग कम नहीं किया जाता है ।
इसी प्रकार पद की संख्या प्राप्त करने के लिये उस-उस गुणस्थान के ध्रुवपदों का उस-उस गुणस्थान में प्राप्त योग, उपयोग या लेश्याओं के साथ गुणा करके सबका जोड़कर फिर चौबीस से गुणा करना चाहिये । तत्पश्चात् दो के उदय के और एक के उदय के उनतीस पदों को नौ योग, सात उपयोग और एक लेश्या के साथ गुणा करके योग द्वारा होने वाली संख्या में योग द्वारा गुणित, उपयोग द्वारा होने वाली संख्या में उपयोग द्वारा गुणित और लेश्या द्वारा होने वाली संख्या में लेश्या द्वारा गुणित पदों को मिलाने पर उनकी संख्या प्राप्त होती है ।
ऐसा करने पर योगगुणित उदयभंग चौदह हजार नौ सौ सैंतीस और पद एक लाख नौ सौ बानव प्राप्त होते हैं । परन्तु इनमें से
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