Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १०
के बंधक देवों के अपने छहों उदयस्थानों में बानवे और अठासी प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं । इसी प्रकार छब्बीस प्रकृतियों के बंधक और तिर्यंचगतियोग्य या मनुष्यगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों के बंधक को भी तथा उद्योत सहित तिर्यंच पंचेन्द्रिययोग्य तीस का बंध करने पर भी यही उदयस्थान और सत्तास्थान होते हैं । तीर्थंकर नाम सहित मनुष्यगतियोग्य तीस प्रकृतियों का बंध करने पर अपने छहों उदयस्थानों में तेरानवे और नवासी प्राकृतिक इन दो में से कोई भी सत्तास्थान होता है। कुल मिलाकर साठ सत्तास्थान होते हैं ।
इस प्रकार देवगति में नामकर्म के बंधादि स्थानों और उनके संवेध को जानना चाहिए । अब गतियों की तरह इन्द्रियों में भी बंधादि स्थानों का विचार करते हैं ।
इन्द्रियों में बंधादि स्थान
इगि विगले पण बंधा अडवीसूणा उ अट्ठ इयरंमि ।
पंच छ एक्कारुदया पण पण बारस उ संताणि ॥ १३०॥
शब्दार्थ - इगि – एकेन्द्रिय, विगले - विकलेन्द्रिय, पण -पांच, बंधाबंधस्थान, अडवीसूणा - अट्ठाईस प्रकृतिक से न्यून, उ-और, अट्ठ-आठ, इयरंमि — इतर - पंचेन्द्रिय में, पंच छ एक्कारुदया-पांच, छह और ग्यारह उदयस्थान, पण पण बारस - पांच, पांच और बारह, उ- और, संत्राणि - सत्तास्थान ।
गाथार्थ - एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में अट्ठाईस प्रकृतिक से न्यून पांच-पांच बंधस्थान होते हैं । इतर- पंचेन्द्रिय में आठों बंधस्थान होते हैं तथा अनुक्रम से पांच, छह और ग्यारह उदयस्थान एवं पांच-पांच तथा बारह सत्तास्थान होते हैं ।
विशेषार्थ - एकेन्द्रिय और विकलेन्दियों में अट्ठाईस प्रकृतिक के सिवाय तेईस प्रकृतिक आदि पाँच-पाँच बंधस्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं-तेईस, पच्चीस, छब्बीस, उनतीस और तीस प्रकृतिक । एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीव मात्र मनुष्य और तियंच गति
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