Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १०
पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय को इक्कीस प्रकृतिक आदि पाँच उदयस्थान होते हैं। जो इस प्रकार हैं-इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस प्रकृतिक । इनमें से इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान इस प्रकार जानना चाहिए-तैजस, कार्मण, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु, वर्णचतुष्क, तिर्यंचगतिद्विक, एकेन्द्रियजाति, स्थावर, बादर, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय और यशःकीति-अयशःकीर्ति में से एक। इन इक्कीस प्रकृतियों का उदय विग्रहगति में वर्तमान बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय को होता है और यश कीति, अयश:कीर्ति का परावर्तन करने से इसके दो भंग हाते हैं। - इसके बाद शरीरस्थ बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय को उक्त इक्कीस प्रकृतियों में से तिर्यंचानुपूर्वी को कम करके औदारिक शरीर, हुण्ड संस्थान, उपघात और प्रत्येक या साधारण इन दोनों में से एक, इस प्रकार चार प्रकृतियों को मिलाने पर चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ प्रत्येक और साधारण के साथ यशःकीर्ति और अयश:कीति का परावर्तन करने से चार भंग होते हैं। वैक्रिय शरीर करते बादर वायुकाय को भी चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है, किन्तु वहाँ औदारिक शरीर के बदले वैक्रिय शरीर कहना चाहिए। शेष प्रकृतियाँ यही समझना चाहिये। इसका एक ही भंग होता है। क्योंकि उसको साधारण और यश:कीर्ति नाम का उदय नहीं होता है। कुल मिलाकर चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान के पाँच भंग होते हैं । __ तदनन्तर शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त को पराघातनाम का उदय मिलाने पर पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पूर्व कथनानुरूप पाँच भंग होते हैं।
तत्पश्चात् उच्छ्वासपर्याप्ति से पर्याप्त को श्वासोच्छ्वास का उदय मिलाने से छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी पूर्व में कहे अनुसार पाँच भंग होते हैं। अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त को उच्छ्वास का उदय होने से पहले आतप या उद्योत दोनों में से किसी एक का उदय हो तो भी छब्बीस प्रकृतिक उदय
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