Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह १०
की आठ चौबीसी में की प्रत्येक चौबीसी में से आहारककाययोगि के स्त्रीवेद में होने वाले आठ-आठ भंग कुल चौंसठ और आहारकमिश्र काययोगि के स्त्रीवेद में होने वाले प्रत्येक चौबीसी के आठ-आठ भंग कुल चौंसठ, कुल मिलाकर एक सौ अट्ठाईस भंग कम करना चाहिये ।
छठे गुणस्थान में कुल एक सौ बानवें भंग होते हैं । उनमें से दो योग के एक सौ अट्ठाईस भंग कम करना चाहिये । क्योंकि ये एक अट्ठाईस एक सौ बानवे के दो तृतीयांश भाग हैं तथा पद संख्या सात सौ चार कम करना चाहिये । क्योंकि कम करने योग्य भंगों की पद संख्या उतनी होती है ।
आहारककाययोग में वर्तमान अप्रमत्तसंयत आत्मा को स्त्रीवेद का उदय नहीं होता है । इसलिये अप्रमत्तसंयत को आठ चौबीसी के एक सौ बानव भंगों में के एक तृतीयांश भाग को कम करना चाहिये यानि चौंसठ भंग कम करना चाहिये और उनके तीन सौ बावन पद अप्रमत्त में होने वाले भंगों और पदों की संख्या में से कम करना चाहिये ।
इस प्रकार से गुणस्थान में योगापेक्षा होने वाले मोहनीय कर्म के उदयभंग और पदों को कम करना चाहिये ।
अब योग, उपयोग और लेश्या द्वारा होने वाली उदय के भंगों और पदों की संख्या प्राप्त करने का सामान्य उपाय बतलाते हैं । मोहनीय कर्म के उदय भंगों और पदों की संख्याप्राप्ति का उपाय उदसु चवीसा धुवगाउ पदेसु जोगमाईहिं । गुणिया मिलिया चउवीसताडिया इयरसंजुत्ता ॥ १२५ ॥ - चौबीसी का, धुवगाउ -
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शब्दार्थ - उदए – उदय में, चउवीसाध्रुवकों का, पसु - पदों में, जोगमाईहि-योग आदि से, गुणिया - गुणा करके, मिलिया - मिलाने पर चउवोसताडिया -- चौबीस से गुणा करके,
इयर संजुत्ता - इतर संख्या मिलाने पर ।
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