Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६,१२७
२४७ सम्यग्दृष्टि गुणस्थान सम्बन्धी बत्तीस-'सम्म बत्तीसा' और मिथ्यादृष्टि गुणस्थान सम्बन्धी छियानवै स्थापित करना चाहिये । जिसका विशेषता के साथ स्पष्टीकरण इस प्रकार है
आहारककाययोग में वर्तमान अप्रमत्तसंयत को स्त्रीवेद नहीं होता है और स्त्रीवेद में एक-एक चौबीसी में आठ-आठ भंग होते हैं । इसीलिये अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में कम करने योग्य आठ स्थापित करने का संकेत किया है। ___ वैक्रियमिश्रकाययोग में वर्तमान सासादनसम्यग्दृष्टि को नपुसकवेद नहीं होता है और नपुसकवेद में एक-एक चौबीसी में आठ-आठ भंग होते हैं। अतएव सासादन गुणस्थान में कम करने योग्य आठ स्थापित करना कहा है।
आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग में वर्तमान प्रमत्त यति को स्त्रीवेद नहीं होता है।
स्त्रीवेद में आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग के प्रत्येक चौबीसी में आठ-आठ भंग होते हैं। इसीलिये प्रमत्तसंयत गुणस्थान में कम करने के लिये दोनों के आठ-आठ, कुल सोलह स्थापित करना चाहिये।
औदारिकमिश्रकाययोग में वर्तमान अविरतसम्यग्दृष्टि को स्त्रीवेद और नपुसंकवेद नहीं होता है । स्त्रीवेद नपुसकवेद के प्रत्येक चौबीसी में आठ-आठ और दोनों मिलकर सोलह भंग होते हैं। इसलिये सोलह तथा वैक्रियमिश्र और कार्मणकाययोग में वर्तमान अविरतसम्यग्दृष्टि के स्त्रीवेद नहीं होता है । अतएव वहां भी पूर्वोक्त रीति से सोलह कुल बत्तीस स्थापित करना चाहिये ।
वैक्रियमिश्र, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग में वर्तमान मिथ्यादृष्टि के उस प्रत्येक योग में अनन्तानुबंधि के उदय बिना की . चार-चार चौबीसी होती हैं । चार चौबीसी के छियानवै भंग होते हैं।
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