Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६
और नवासी प्रकृतिक इन तीन सत्तास्थानों में से कोई भी सत्तास्थान होता है।
देवगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों के बंधक मनुष्य के सात उदयस्थान इस प्रकार हैं-इक्कीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक । मिथ्यादृष्टि मनुष्य तो पर्याप्तावस्था में ही देवगतियोग्य बध करता है परन्तु सम्यग्दृष्टि मनुष्य अपर्याप्तावस्था में भी देवगतियोग्य बंध करता है। इसलिये अपर्याप्तावस्था में भी संभव उदयस्थान यहाँ ग्रहण किये हैं। इनमें इक्कीस और छब्बीस प्रकृतियों का उदय करण-अपर्याप्त अविरतसम्यग्दृष्टि को होता है तथा पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस प्रकृतिक ये चार उदयस्थान पंचम गुणस्थान तक वैक्रिय शरीरी मनुष्य को होते हैं। पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस प्रकृतिक ये पांच उदयस्थान वैक्रिय शरीरी और आहारक शरीरी संयत को होते हैं। अट्ठाईस, उनतीस प्रकृतिक ये दो उदयस्थान करण-अपर्याप्त अविरतसम्यग्दृष्टि को होते हैं और तीस प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ सम्यक्त्वी या मिथ्यात्वी मनुष्य को होता है।
पूर्वोक्त प्रत्येक उदयस्थान में दो-दो सत्तास्थान होते हैं। वे इस प्रकार हैं-बानवै और अठासी प्रकृतिक । मात्र आहारक संयत को अपने सभी उदयस्थानों में बानवै प्रकृतिक सत्तास्थान ही होता है और तीस प्रकृतिक उदयस्थान वाले मनुष्य को यह चार सत्तास्थान होते हैं -बानवै, अठासी, छियासी, नवासी प्रकृतिक । इनमें से आदि के तीन मिथ्यादृष्टि मनुष्य को और सम्यग्दृष्टि मनुष्य को आदि के दो ही सत्तास्थान होते हैं। नवासो प्रकृतिक सत्तास्थान नरकगति योग्य अट्ठाईस प्रकृतियों के बंधक मनुष्य को होता है और शेष तीन सत्तास्थान नरकगतियोग्य या देवगतियोग्य बंध करने पर होते हैं । कुल मिलाकर अट्ठाईस प्रकृतियों के बंध में सोलह सत्तास्थान होते हैं।
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