Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० . शब्दार्थ-अछलाहियवीसा-आठ और छह अधिक बीस (अट्ठाईस, छब्बीस), सोलस-सोलह, बीस-बीस, च-और, बारस-बारह, छछह, दोसु-दो में, दो-दो, चउसु-चार में, तीसु-तीन में, एक्कं-एक, मिच्छाइसु-मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में, आउए-आयुकर्म के, भंगा-भंग ।
नरतिरिउदए-मनुष्य और तिथंच आयु के उदय में, नारयबंधविहूणानरकायु के बंध के बिना, उ-और, सासणि-सासादन में, छन्वीसा-छब्बीस, बंधसमऊण-बंध से संभव भंगों को छोड़कर, सोलस-सोलह, मीसे-मिश्र गुणस्थान में, चउजधजुय-बंध से संभव चार भंगों सहित, सम्मे-अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में।
देसविरयम्मि-देशविरत में, बारस-बारह, तिरिमणभंगा-तियंच और मनुष्य से होने वाले भंग, छबंधपरिहोणा-बंध से होने वाले छह भंगों से रहित, मणभंगतिबंघूणा-बंध से होने वाले तीन भंगों से न्यून्य मनुष्य के (छह) भंग, दुसु-दो में (प्रमत्त-अप्रमत्त संयत गुणस्थान में) सेसा-शेष गुणस्थान सम्बन्धी, उभयसेढीसु-दोनों श्रेणियों में कहे अनुसार ।
गाथार्थ-अट्ठाईस, छब्बीस, सोलह, बीस, बारह, दो में छह और तीन में एक, इस प्रकार मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में आयुकर्म के भंग होते हैं।
मनुष्यायु और तिर्यंचायु के उदय में नरकायु के बंध बिना के छब्बीस भंग सासादन गुणस्थान में होते हैं । बंध के समान न्यून (मिश्र गुणस्थान में आयु का बंध नहीं होने से बंध से होने वाले भंगों से न्यून) सोलह भंग मिश्रदृष्टि को होते हैं और बंध से होने वाले भंगों को मिलाने पर बीस भंग अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में होते हैं।
बंध से होने वाले छह भंगों से रहित तिर्यंच और मनुष्य के ' बारह भंग देशविरत गुणस्थान में होते हैं । बंध से होने वाले तीन भंग रहित मनुष्य के छह भंग दो (प्रमत्त और अप्रमत्त) गुणस्थान में होते हैं। शेष गुणस्थानों के भंग दोनों श्रेणियों में पूर्व में कहे अनुसार यथायोग्य रीति से समझना चाहिये।
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