Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० दो सौ सैंतीस लेश्या के भेद से मोहनीय कर्म के पदों की संख्या होती
इस प्रकार लेश्या के भेद से मोहनीय कर्म के उदयभंग और उदयपदों की संख्या जानना चाहिये । अब योग द्वारा होने वाले मोहनीय उदय के भंग और उदयपदों का विचार करते हैं। योग द्वारा संभव उदयभंग और उदयपद
चोद्दसउ सहस्साई सयं च गुणहत्तरं उदयमाणं । . सत्तरसा सत्तसया पणनउइ सहस्स पयसंखा ॥१२०॥
शब्दार्थ-चोइसउ सहस्साई-चौदह हजार, सयं-सो, च-और, गुणहत्तर--उनहत्तर, उदयमाणं-उदयभंग, सत्तरसा-सत्रह, सत्तसयासात सो, पणनउइ-पंचानवे, सहस्स-हजार, पयसंखा-पद संख्या । ___ गाथार्थ-चौदह हजार एक सौ उनहत्तर योग गुणित उदयभंग होते हैं और पंचानवै हजार सात सौ सत्रह पदसंख्या है।
विशेषार्थ-गाथा में गुणस्थानों में योग से गुणित मोहनीयकर्म के सभी उदयभंगों एवं पदों का प्रमाण बतलाया है कि वे अनुक्रम से चौदह हजार एक सौ उनहत्तर और पंचानवै हजार सात सौ सत्रह होते हैं। विस्तार से जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में आठ चौबीसी होती हैं और आहारकद्विक न्यून तेरह योग होते हैं । अतएव तेरह योगों से आठ को गुणा करने पर एक सौ चार होते हैं। सासादनगुणस्थान में चार चौबीसी होती हैं । यहाँ भी पूर्वोक्त तेरह योग होते हैं। अतएव तेरह को चार से गुणा करने पर बावन होते हैं।
मिश्रगुणस्थान में भी चार चौबीसी होती हैं। परन्तु मिश्र गुणस्थानवी जीव काल नहीं करने से यहाँ अपर्याप्तावस्था भावीवैक्रियमिश्र, औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग भी नहीं होते हैं। इसलिये पूर्वोक्त आहारकद्विक और वैक्रियमिश्र आदि तीन योगों सहित पांच
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