Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११८
मिथ्यात्व, सासादन और मिश्र इन तीन गुणस्थानों में मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान, विभंगज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन ये पाँच उपयोग होते हैं । अविरतसम्यग्दृष्टि और देशविरत गुणस्थान में मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये छह उपयोग और प्रमत्त-संयत से लेकर सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक पूर्वोक्त छह में मनपर्याय ज्ञान को मिलाने पर सात उपयोग होते हैं।
इस प्रकार जिस गुणस्थान में जितनी चौबीसी होती हैं । उनको उस गुणस्थान में जितने उपयोग हों, उनके साथ गुणा करके फिर उन्हें चौबीस से गुणा करना और उसमें नौवें दसवें गुणस्थान की भंग संख्या को मिलाने पर उपयोग से होने वाली समस्त भंग संख्या का प्रमाण प्राप्त होता है । जैसे कि
मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में आठ चौबीसी होती हैं, सासादन में चार और मिश्र में चार चौबीसी होती हैं । इनका कुल जोड़ सोलह है । उन तीनों गुणस्थानों में पांच-पांच उपयोग होने से पांच से गुणा करने पर अस्सी चौबीसी होती है और उन अस्सी चौबीसियों को चौबीस से गुणा करने पर (८०x२४ = १९२०) उन्नीस सौ बीस भंग होते हैं । ___ यदि पृथक्-पृथक् गुणस्थान में गुणा करना हो तो मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में आठ चौबीसी होती हैं और पांच उपयोग होते हैं। जिससे आठ को पांच से गुणा करने पर चालीस चौबीसी हुईं। इसी प्रकार सासादन में चार चौबीसी हैं, उनको पांच उपयोग से गुणा करने पर बीस चौबीसी होती हैं । मिश्र में भी चार चौबीसी हैं। उनको भी पांच से गुणा करने पर बीस चौबीसी हुई और उनका कुल जोड़ (४०+२०+२०=८०) अस्सी हुआ और उनके भंग जानने के लिये अस्सी को चौबीस से गुणा करने पर उन्नीस सौ बीस भंग हुए। इसी प्रकार प्रत्येक गुणस्थान के लिये भी समझना चाहिये।
अविरत-सम्यग्दृष्टिगुणस्थान में आठ चौबीसी हैं और देशविरतगुणस्थान में भी आठ चौबीसी हैं । उनको उन गुणस्थानों में संभव
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