Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६५
१८३ , द्विक की उद्वलना होने पर बयासी प्रकृतिक सत्तास्थान होते हैं। इन तीन सत्तास्थानों की अध्र व यह संज्ञा है तथा नौ और आठ प्रकृति रूप, सब मिलाकर नामकर्म के बारह सत्तास्थान होते हैं। ___इनमें से बयासी प्रकृति का समूह रूप सत्तास्थान दो प्रकार से होता है। एक तो क्षपकश्रेणि में और दूसरा संसारी जीवों के । ये दोनों सत्तास्थान समसंख्या वाले होने से यहां एक की ही विवक्षा की है। जिससे बारह सत्तास्थान कहे हैं ।
अब नौवें गुणस्थान में सत्ता-विच्छिन्न होने वाली नामकर्म की तेरह प्रकृतियों के नाम बतलाते हैं । नौवें गुणस्थान में सत्ताविच्छिन्न नामकर्म की तेरह प्रकृति
थावरतिरिगइदोदो आयावेगेंदि विगलसाहारं । नरयदुगुज्जोवाणि य दसाइमेगंततिरिजोगा ॥६५॥ शब्दार्थ-थावरतिरिगइदोदो-स्थावरद्विक, तिर्यंच गति द्विक, आयावेगेंदि-आतप, एकेन्द्रिय, विगलसाहारं-विकले न्द्रियत्रिक जाति, साधारण, नरयदुग-नरकद्विक, उज्जोवाणि-उद्योत नाम, य-और, दसाइमेगंततिरिजोगा-आदि की दस एकान्त रूप से तिर्यच प्रायोग्य हैं।
गाथार्थ-स्थावरद्विक, तिर्यंचद्विक, आतप, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रियजातित्रिक, साधारण, नरकद्विक और उद्योत ये नाम त्रयोदशक कहलाती हैं। इनमें से आदि की दस प्रकृतियां एकान्त रूप से तिर्यंचगतिप्रायोग्य हैं।
विशेषार्थ-गाथा में नौवें गुणस्थान में विच्छिन्न होने वाली तेरह प्रकृतियों के नाम बतलाये हैं। जिनमें से दस प्रकृतियों का उदय तिर्यंचगति में ही होने से तिर्यंचगतिप्रायोग्यदशक कहलाती हैं। विशेषता के साथ स्पष्टीकरण इस प्रकार है
'थावरतिरिगइदोदो' अर्थात् स्थावरद्विक-स्थावर और सूक्ष्म नाम, तिर्यंचगति और तिर्यंचानुपूर्वी रूप तिर्यंचगतिद्विक, आतप, एकेन्द्रिय जाति, विकलेन्द्रियजातित्रिक-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति,
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