Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६,१००
२०३ में सात, सत्ताईस प्रकृतियों के उदय में छह, अट्ठाईस प्रकृतियों के उदय में छह, उनतीस प्रकृतियों के उदय में छह, तीस प्रकृतियों के उदय में छह और इकत्तीस प्रकृतियों के उदय में चार सत्तास्थान होते हैं और कुल मिलाकर चउवन (५४) सत्तास्थान होते हैं।
जैसे तिर्यंचगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, देव और नारक उदय और सत्तास्थानों का विचार किया है, उसी प्रकार तिर्यचगतियोग्य उद्योत नामकर्म के साथ तीस प्रकृतियों को बांधने पर एकेन्द्रियादि को भी उदय और सत्तास्थान कहना चाहिये तथा मनुष्यगतियोग्य तीर्थंकरनाम के साथ तीस प्रकृतियों को बांधने पर अविरतसम्यग्दृष्टि देवों को इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस प्रकृतिक ये छह उदयस्थान और नारकों के तीस प्रकृतिक के सिवाय पांच उदयस्थान होते हैं और सत्तास्थान सामान्यतः तेरानवै और नवासी प्रकृतिक ये दो होते हैं।
उनमें मनुष्यगतियोग्य तीर्थंकरनाम के साथ तीस प्रकृतियों को बांधने पर देवों को अपने सभी उदयस्थानों में तेरानवै और नवासी प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं। तीर्थकरनाम के साथ मनुष्यगतियोग्य तीस प्रकृतियों को बांधते नारक को अपने चारों उदयस्थानों में मात्र नवासी प्रकृति रूप एक ही सत्तास्थान होता है, तेरानवै प्रकृतिक नहीं होता है। क्योंकि तीर्थकरनाम और आहारकचतुष्क दोनों की युगपत् सत्तावाला जीव नरक में उत्पन्न नहीं होता है तथा उद्योतनाम का उदय नहीं होने से नारकों के तीस प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता है । इसीलिये चार उदयस्थान बताये हैं। ___ आहारकद्विक और देवगतियोग्य तीस प्रकृतियों का बंध करते अप्रमत्तसंयत को तीस प्रकृतिक उदयस्थान और बानवै प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । अपूर्वकरण में भी इसी प्रकार जानना चाहिये। इस तरह सामान्य से तीस प्रकृतियों के बंधक को इक्कीस प्रकृतियों के उदय में सात, चौबीस प्रकृतियों के उदय में पांच, पच्चीस प्रकृतियों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org