Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
४८
पंचसंग्रह : १०
२. जिन भव्यों ने अभी तक भी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं किया है, किन्तु अब प्राप्त करेंगे, उन भव्यों की अपेक्षा बाईस के बंध का अनादि-सांत काल है। ____३. सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व में आये हुए जीवों की अपेक्षा सादि-सांत काल है और वह भी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्तन प्रमाण है ।। ___ पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक इन पाँच बंधस्थानों का काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । क्योंकि ये पाँचों बंधस्थान नौवें गुणस्थान में ही होते हैं और उस गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त ही है।
इस प्रकार मोहनीयकर्म के बंध स्थानों का उत्कृष्ट बंधकाल जानना चाहिये।
अब इनका जघन्य काल बतलाते हैं
बाईस, सत्रह, तेरह और नौ प्रकृतिक, इन चार बंधस्थानों का अन्तमुहूर्त बंधकाल है । क्योंकि ये बंधस्थान जिस-जिस गुणस्थान में हैं, वहाँ कम से कम अन्तर्मुहूर्त रहकर ही जीव अन्यत्र जाता है तथा पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक इन पाँच बंधस्थानों का जघन्यकाल तक समय है । वह एक समय इस प्रकार जानना चाहियेउपशमश्रेणि में उक्त पाँच बंधस्थानों को बांधकर दूसरे समय में कोई एक जीव काल करके देवलोक में जाये तो वहाँ अविरति परिणाम होते हैं । वहाँ अविरत (सम्यग्दृष्टिपने) में उसे सत्रह का बंध होता है। इस प्रकार उपशमश्रेणि में एक समय काल संभव है। इसी प्रकार चार-प्रकृतिक आदि बंधस्थानों के लिये भी समझना चाहिये।
१ क्योंकि सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व में आये जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त
और उत्कृष्ट देशोन अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक मिथ्यात्व में रहते हैं। उसके बाद अवश्य सम्यक्त्व प्राप्त कर लेते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org