Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २६
मिच्छे सगाइ चउरो सासणमीसे सगाइ तिण्णुदया।
छप्पंचचउरपुवा चउरो तिअ अविरयाईणं ॥२६॥ शब्दार्थ-मिच्छे-मिथ्यात्व गुणस्थान में, सगाइ-सात से लेकर, चउरो- चार, सासण मीसे-सासादन और मिश्र गुणस्थान में, सगाइ-सात आदि, तिण्णुदया-तीन उदयस्थान, छप्पंचच उर-छह, पांच और चार, अपुवा-अपूर्वकरणगुणस्थान में, चउरो-चार, तिस-तीन, अविरयाईणंअविरतसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानों में।
गाथार्थ-मिथ्यात्व गुणस्थान में सात से लेकर दस तक चार, सासादन और मिश्र गुणस्थान में सात से नौ तक तीन, अविरत से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक छह, पांच और चार आदि चार और अपूर्वकरण गुणस्थान में चार आदि तीन उदयस्थान होते हैं।
विशेषार्थ-गाथा में अपूर्वकरणगुणस्थान पर्यन्त आठ गुणस्थानों में उदयस्थानों का निर्देश किया है
मिथ्यात्व गुणस्थान-'मिच्छे सगाई चउरो' अर्थात् मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों के सात से दस प्रकृतिक तक के चार उदयस्थान होते हैं। उनमें से सात-प्रकृतिक उदयस्थान में संकलित प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधादि में से तीन क्रोधादि, आदि शब्द से तीन मान अथवा तीन माया या तीन लोभ समझना चाहिये । क्रोध, मान, माया और लोभ परस्पर विरोधी होने से एक साथ उदय में नहीं होते हैं । परन्तु क्रोध का उदय हो तो जिस क्रोध का उदय हो, उससे नीचे के सभी क्रोध का समान जातीय होने से उदय होता है। जैसे कि अनन्तानुबंधि क्रोध का उदय हो तो उससे नीचे के अप्रत्याख्यानावरणादि तीनों क्रोध का उदय होता है। इसी प्रकार अनन्तानुबंधि क्रोध का उदय न हो और अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का उदय हो तो उससे नीचे के प्रत्याख्याना
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