Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १०
विशेषार्थ - नामकर्म के बारह उदयस्थानों का उल्लेख पूर्व में किया है। उनमें से चतुर्गति में प्राप्त उदयस्थानों का संकेत यहां किया है
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'मणुसु अचउवीसा' अर्थात् चौबीस प्रकृतिक को छोड़कर शेष ग्यारह उदयस्थान मनुष्यगति में होते हैं । चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान मनुष्यों में नहीं पाये जाने का कारण यह है कि यह उदयस्थान मात्र एकन्द्रियों में ही होता है । इसीलिये उसका निषेध किया है । तथा
बीस, आठ और नौ प्रकृतिक इन तीन उदयस्थानों को छोड़कर शेष नौ उदयस्थान तिर्यंचगति में होते हैं - 'वीसडनववज्जियाउ तिरिए ।' इन बीस, आठ और नौ प्रकृतिक उदयस्थानों का तिर्यंचगति में नहीं होने के कारण यह है कि बीस प्रकृतिक उदयस्थान केवलिसमुद्घात अवस्था में और आठ, नौ प्रकृतिक उदयस्थान अयोगिकेवली गुणस्थान में होते हैं। तथा
इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतिक ये पांच उदयस्थान नरकगति में होते हैं तथा इन पांच में तीस प्रकृतिक उदयस्थान को और मिलाने से कुल मिलाकर छह उदयस्थान देवगति में होते हैं ।
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इस प्रकार चारों गतियों में सामान्य से नामकर्म के उदयस्थान जानना चाहिये। जिनका विस्तार से विशेष वर्णन आगे किया जा रहा है। लेकिन उसके पूर्व गुणस्थानों में नामकर्म के उदयस्थानों को बतलाते हैं ।
गुणस्थानों में नामकर्म के उदयस्थान
इगवीसाई मिच्छे सगट्टवीसा य सासणे होणा । चवीसूणा सम्मे सपंचवीसाए पणवीसाए देसे छव्वीणा पमत्ति पुण पंच | गुणतीसाई मीसे तीसिगुतीसा य
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जोगिम्मि ॥७५॥
अपमत्ते ||७६ ||
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