Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७५,६६,७७
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अट्ठो नवो अजोगिस्स वीसओ केवलीसमुग्घाए। इगिवीसो पुण उदओ भवंतरे सव्वजीवाणं ॥७७॥ शब्दार्थ-इगवीसाई-- इक्कीस प्रकृतिक आदि, मिच्छे---मिथ्यात्व गुणस्थान में, सगट्ठवीसा-सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक, य--और, सासणे-सासादन में, होणा-छोड़कर, चउवीसूणा-चौबीस प्रकृतिक रहित, सम्मे- अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में, सपंचवीसाए-पच्चीस प्रकृतिक सहित, जोगिम्मि--सयोगिकेवली गुणस्थान में ।
पणवीसाए-पच्चीस प्रकृतिक आदि, देसे-देशविरत गुणस्थान में, छव्वीसूणा-छब्बीस प्रकृतिक को छोड़कर, पमत्ति-प्रमत्तसंयत में, पुणपुन: और, पंच-पांच, गुणतीसाई-उनतीस प्रकृतिक आदि, मीसे-मिश्र गुणस्थान में, तीसिगुतीसा-तीस और इकत्तीस प्रकृतिक, य-और, अपमतेअप्रमत्तसंयत गुणस्थान में । ___अट्ठो नवो-आठ और नौ प्रकृतिक, अजोगिस्स-अयोगिकेवली गुणस्थान में, वीसाओ-बीस प्रकृतिक, केवलीसमग्घाए-केवलिस मृद्घात में इगिबीसो-- इक्कीस प्रकृतिक, पुण-और, पुनः, उदओ-उदय, भवंतरे-भवांतर में जाते, सव्वजीवाणं-सभी जीवों के ।।
गाथार्थ-मिथ्यात्वगुणस्थान में इक्कीस आदि नौ उदयस्थान होते हैं। उनमें से सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक को छोड़कर शेष सात सासादन गुणस्थान में तथा चौबीस प्रकृतिक को छोड़कर शेष आठ अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में, और चौबीस के साथ पच्चीस प्रकृतिक को छोड़कर शेष सात सयोगिकेवली गुणस्थान में होते हैं।
छब्बीस प्रकृतिक रहित पच्चीस प्रकृतिक आदि छह उदयस्थान देशविरतगुणस्थान में, छब्बीस प्रकृतिक रहित पच्चीस प्रकृतिक आदि पांच प्रमत्तसंयत में, उनतीस प्रकृतिक आदि तीन मिश्रगुणस्थान में तथा तीस और इकत्तीस प्रकृतिक ये दो उदयस्थान अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में होते हैं।
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