Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४७,४८
६७ उदयप्पत्ताणुदओ पएसओ अणुवसंतपगईणं ।
अणुभागओ उ निच्चोदयाण सेसाण भइयव्वो ॥४८॥ शब्दार्थ-अपज्जत्तगजाई -अपर्याप्त और जाति नाम, पज्जत्तगईहिपर्याप्त और गति नामकर्म द्वारा, पेरिया---प्रेरित, बहुसो-बहुत सी, बंधंबंध को, उदयं-उदय को, च-और, उति-प्राप्त होती हैं, सेसपगइउशेष प्रकृतियां, नामस्स-नामकर्म की । ___उदयप्पत्ताणुदओ-उदयप्राप्त का उदय होता है, पएसओ-प्रदेश से, अणुवसंतपगईणं--अनुपशांत प्रकृतियों का, अणुभागओ-अणुभाग से, उऔर, निच्चोदयाण-नित्योदयी प्रकृतियों का, सेसाण-शेष प्रकृतियों का, भइयव्वो-भजनीय। ___ गाथार्थ-अपर्याप्तनाम, जातिनाम, पर्याप्त और गति नामकर्म द्वारा प्रेरित हुई नामकर्म की शेष बहुत सी प्रकृतियां बंध और उदय को प्राप्त होती हैं।
उदयप्राप्त कर्म का उदय होता है । अनुपशांत प्रकृतियों का ही प्रदेशोदय होता है (उपशांत का नहीं होता है)। नित्योदया प्रकृतियों का ही अनुभागोदय होता है और शेष प्रकृतियों का उदय भजनीय है। विशेषार्थ-इन दो गाथाओं में कारण सहित नामकर्म की बंधोदयसहचारिणी प्रकृतियों का निर्देश किया है। जो इस प्रकार है
अपर्याप्तनाम. जातिनाम, पर्याप्तनाम और गति नामकर्म द्वारा प्रेरित अर्थात् अपर्याप्तनामकर्म आदि का जब बंध या उदय हो तब नामकर्म की बहुत सी प्रकृतियां बंध या उदय में प्राप्त होती हैं अथवा अनेक बार बंध और उदय में प्राप्त होती हैं-'अपज्जत्तगजाई पज्जत्तगईहि पेरिया बहुसो बंधं उदयं च उति ।' जैसे कि अपर्याप्त नामकर्म बंधता हो अथवा उदय में हो तब मनुष्यगतियोग्य या तियंचगतियोग्य नामकर्म की बहुत सी प्रकृतियां बंध और उदय में प्राप्त होती हैं । एकेन्द्रियादि जातिनाम बंधता हो या उदयप्राप्त हो
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org