Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० एक साथ जितनी प्रकृतियों का बंध हो, उसको बंधस्थान कहते हैं और गाथा में जिस क्रम से कहे हैं, वे कुल मिलाकर आठ होते हैं। जो इस प्रकार जानना चाहिये-तेईस, पच्चीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकत्तीस और एक प्रकृतिक । इनमें से किस गति योग्य बंध करते कितने बंधते हैं और किस गति में कौन-कौन बंधते हैं, इसको विस्तारपूर्वक आगे स्पष्ट किया जा रहा है । ____अब उपर्युक्त बंधस्थानों में से मनुष्य आदि गति में वर्तमान जीव जितने बंधस्थानों का बंध करते हैं इसको स्पष्ट करते हैं। मनुष्यादि गतियों में बंधयोग्य बंधस्थान
मणुयगईए सव्वे तिरियगईए य छ आइमा बंधा ।
नरए गुणतीस तीसा पंचछवीसा य देवेसु ॥५६॥ शब्दार्थ--मणुयगईए-मनुष्यगति में, सम्वे--सभी, तिरियगईए ---तिर्यंचगति में, य-और, छ-छह, आइमा--आदि के, बंधा-बंधस्थान, नरएनरकगति में, गुणतीस-उनतीस, तीसा--तीस, पंचछवीसाय--पच्चीस, छब्बीस तथा पूर्वोक, देवेसु-देवगति में । ___ गाथार्थ-मनुष्यगति में समस्त बंधस्थान होते हैं । तिर्यचगति में आदि के छह, नरकगति में उनतीस और तीस प्रकृतिक तथा देवगति में पच्चीस, छब्बीस तथा पूर्वोक्त उनतीस, तीस प्रकृतिक इस प्रकार बंधस्थान होते हैं। विशेषार्थ-गाथा में चारों गति में नामकर्म के संभव बंधस्थानों का निर्देश किया है
'मणुयगईए सव्वे' अर्थात् मनुष्य के सभी गतियों में उत्पन्न हो सकने से मनुष्यगति में वर्तमान जीव यथायोग्य रीति से नामकर्म के सभी तेईस प्रकृतिक से लेकर एक प्रकृतिक तक के आठों बंधस्थान बांधता है। उनमें से एकेन्द्रिययोग्य तेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक इस तरह तीन और विकलेन्द्रिययोग्य पच्चीस, उनतीस, तीस
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