Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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ב.
पंचसंग्रह : १०
एवं चौबीस प्रकृतिक यह छह सत्तास्थान होते हैं तथा इतर - नौ के उदय में इक्कीस का सत्तास्थान नहीं होता है ।
विशेषार्थ - सत्रह के बंध और छह के उदय में इक्कीस, अट्ठाईस और चौबीस प्रकृति रूप यह तीन सत्तास्थान होते हैं तथा सात और आठ के उदय में सत्ताईस, तेईस, बाईस प्रकृतिक एवं 'य च', शब्द से ग्रहण किये गये अट्ठाईस चौबीस और इक्कीस प्रकृतिक इस तरह कुल मिलाकर छह सत्तास्थान होते हैं । नौ के उदय में इक्कीस के बिना शेष पांच सत्तास्थान होते हैं ।
उक्त संक्षिप्त कथन का विस्तृत विवेचन इस प्रकार है- सत्रह का बंध तीसरे और चौथे गुणस्थान में होता है । तीसरे गुणस्थान में सात, आठ और नौ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं और अट्ठाईस, सत्ताईस तथा चौबीस प्रकृतिक यह तीन सत्तास्थान होते हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिये
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अट्ठाईस प्रकृति की सत्ता वाला जो कोई जीव सम्यग्मिथ्यात्व प्राप्त करे उसे अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । मिथ्यादृष्टि होने पर भी जिसने पहले सम्यक्त्वमोहनीय की उवलना की परन्तु मिश्रमोहनीय की उवलना करना प्रारम्भ नहीं किया और बीच में ही परिणामवश मिथ्यात्व गुणस्थान से मिश्रगुणस्थान में जाये, तो उसे सत्ताईस का सत्तास्थान होता है तथा पूर्व में सम्यग् ष्टि होने पर अनन्तानुबंध की विसंयोजना की और बाद में परिणामों के वश मिश्र गुणस्थान प्राप्त करे तो उसे चौबीस का सत्तास्थान होता है । क्योंकि चारों गति के सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबंधि की विसंयोजना करने के बाद मिश्र गुणस्थान प्राप्त कर सकते हैं । इसलिए चारों गति में सम्यग् - मिथ्यादृष्टियों को चौबीस का सत्तास्थान होता है । इसी प्रकार से आठ और नौ के उदय में भी अट्ठाईस, सत्ताईस और चौबीस प्रकृतिक ये तीन-तीन सत्तास्थान होते हैं ।
अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में छह, सात, आठ और नौ प्रकृतिक इस तरह चार उदयस्थान और अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस और
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