Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४१ इक्कीस प्रकृतिक ये पांच सत्तास्थान होते हैं। तीन प्रकार के सम्यक्त्वी होते हैं। उनमें से औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दृष्टियों के सम्यक्त्वमोहनीय का उदय नहीं होता है, जिससे उनको उसके उदय रहित के छह, सात और आठ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्वमोहनीय का उदय होने से उसके उदय वाले सात, आठ और नौ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं। सत्तास्थानों में से क्षायिक सम्यग्दृष्टि के इक्कीस प्रकृतिक, औपशमिक सम्यग्दृष्टि के अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक तथा क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के अपने-अपने उदयस्थान में अट्ठाईस, चौबीस, तेईस और बाईस प्रकृतिक इस तरह चार सत्तास्थान होते हैं । ___अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में सत्रह के बंध में छह का उदय क्षायिक और औपशमिक सम्यग्दृष्टि को होता है तथा क्षायिक सम्यग्दृष्टि के इक्कीस प्रकृतिक एक और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं । भय अथवा जुगुप्सा सहित सात का उदय क्षायिक और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के होता है और सत्तास्थान छह के उदय में जिस प्रकार से बताये हैं उसी प्रकार से क्षायिक सम्यग्दृष्टि के एक इक्कीस प्रकृतिक और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक यह दो होते हैं। सम्यक्त्वमोहनीय सहित सात का उदय क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के होता है। इसके सर्व प्रकृति की सत्ता में अट्ठाईस प्रकृतिक और अनन्तानुबंधि के विसंयोजक के चौबीस, प्रकृतिक, क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न करने पर मिथ्यात्वमोहनीय का क्षय होने के बाद तेईस और उसे ही मिश्रमोहनीय का क्षय होने के बाद बाईस प्रकृतिक इस प्रकार चार सत्तास्थान होते हैं।
तेईस और बाईस प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि को क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न करते हुए ही होते हैं। कम से कम कुछ अधिक आठ वर्ष की (सात मास गर्भ के और आठ वर्ष प्रसव होने के बाद के, कुल कम से कम आठ वर्ष और सात मास की) अवस्था
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org