Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४२ कि शेष सभी सत्तास्थान तिर्यंचगति में संभव नहीं हैं। इसका उत्तर यह है कि क्षायिक सम्यग्दृष्टि संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में उत्पन्न होते नहीं है परन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में ही उत्पन्न होते हैं और असंख्यात वर्ष की आयु वाले युगलिक होने से उनको देशविरत गुणस्थान होता ही नहीं है और यहाँ तो देशविरत के सत्तास्थानों का विचार किया जा रहा है। इसलिये देशविरत तिर्यंचों में तेईस प्रकृतिक आदि कोई सत्तास्थान नहीं होते हैं, यह कहा है। सप्ततिकाचूर्णि में कहा है-'एगवीसा तिरिक्खेसु संजयासंजएसु न उन्वज्जइ, कहं ? भन्नइ-संखेज्जवासाउएसु तिरिवखेसु खाइग सम्मदिट्ठी न उव्वज्जइ, असंखिज्जवासाउएसु उववज्जेज्जा तस्स देसविरई नस्थित्ति' मोहनीय की इक्कीस प्रकृति की सत्तावाला क्षायिक सम्यग्दृष्टि देशविरत तिर्यंच में उत्पन्न नहीं होता है । क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में उत्पन्न नहीं होता है, असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में उत्पन्न होता है और उन्हें देशविरतगुणस्थान नहीं होता है तथा जो देशविरत मनुष्य है उनको पाँच के उदय में इक्कीस, चौबीस और अट्ठाईस प्रकृतिक ये तीन सत्तास्थान होते हैं। छह और सात के प्रत्येक उदय में पांच सत्तास्थान होते हैं । आठ के उदय में इक्कीस का सत्तास्थान छोड़कर शेष चार सत्तास्थान होते हैं। ये सभी सत्तास्थान अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में किये गये वर्णन के अनुसार समझ लेना चाहिये।
इसी प्रकार प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में नौ के बंध, चार के उदय में अट्ठाईस, चौबीस और इक्कीस प्रकृतिक इस तरह तीन-तीन सत्तास्थान होते हैं। पाँच और छह के उदय में अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस, इक्कीस प्रकृतिक इस तरह पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं और सात के उदय में इक्कीस को छोड़कर शेष चार सत्तास्थान होते हैं जो ऊपर किये वर्णन के अनुसार समझ लेना चाहिए।
अपूर्वकरणगुणस्थान में नौ के बंध में चार, पाँच और छह प्रकृतिक इस तरह तीन उदयस्थान होते हैं । इन प्रत्येक उदयस्थान में
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