Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा २६
प्रकार से होता है जिससे उसके चौबीस प्रकार होते हैं । इसी प्रकार किसी को आठ का उदय, किसी को नौ का उदय और किसी को दस का उदय होता है । वे आठ, नौ और दस के उदय भी संख्या वही होने पर भी अनेक प्रकार से होते हैं । जिससे उनके चौबीस - चौबीस विकल्प होते हैं । अन्य प्रकृतियों में विकल्प न होने से वेद, कषाय और युगल के साथ फेर-बदल करने से चौबीस ही विकल्प होते हैं, अधिक नहीं । प्रकृतियों के फेरफार से ही भिन्न-भिन्न विकल्प होते हैं । वे सभी विकल्प एक समय अनेक जीवों की अपेक्षा और कालभेद से एक जीव की अपेक्षा संभव हैं ।
उक्त सात से दस पर्यन्त के चार उदयस्थानों में भंगों की चौबीसी इस प्रकार हैं- सात- प्रकृतिक उदयस्थान की एक, आठ प्रकृतिक उदयस्थान की तीन, नौ- प्रकृतिक उदयस्थान की तीन और दस - प्रकृतिक उदयस्थान की एक । इस प्रकार एक, तीन, तीन और एक को मिलाने से मिथ्यात्वगुणस्थान में मोहनीयकर्म के उदयस्थानों की आठ चौबीसी होती हैं ।
सासादन गुणस्थान- - इस गुणस्थान में सात- प्रकृतिक, आठप्रकृतिक, और नौ- प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं । उनमें से सात प्रकृतिक उदयस्थान इस प्रकार जानना चाहिये
अनन्तानुबंधि, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधादि में से क्रोधादि चार, तीन वेद में से एक वेद और युगलद्विक में से एक युगल, इन सात प्रकृतियों का सासादनगुणस्थान में अवश्य उदय होता है । यहाँ पूर्वोक्त क्रमानुसार भंगों की एक चौबीसी होती है तथा इन सात में भय या जुगुप्सा का उदय मिलाने पर दो प्रकार से आठ का उदयस्थान होता है । उसकी दो चौबीसी होती हैं । भय, जुगुप्सा दोनों को एक साथ मिलाने पर नौ का उदयस्थान होता है । यहाँ एक चौबीसी होती है और कुल मिलाकर सासादनगुणस्थान में चार चौबीसी अर्थात् ६६ (छियानवे) भंग जानमा चाहिये ।
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