Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० विशेषार्थ - मोहनीयकर्म के उक्त बंधस्थानों में से किसके कितने प्रकार संभव हैं, उनको इन दो गाथाओं में स्पष्ट किया है
हास्य- रति युगल और शोक अरति युगल क्रम से बंधने के कारण नौ- प्रकृतिक बन्ध तक के सभी बन्धस्थानों के दो प्रकार हैं। किसी समय हास्य-रतियुगल तो किसी समय अरति शोकयुगल का बन्ध होता है, किन्तु किसी भी समय इन चारों प्रकृतियों का एक साथ बन्ध नहीं होता है तथा मिथ्यात्वगुणस्थान में एक साथ एक समय में मोहनीय की बाईस प्रकृतियों का बन्धक अध्यवसायानुसार किसी समय पुरुषवेद को, किसी समय स्त्रीवेद को अथवा किसी समय नपुसंक वेद को बाँधता है, किन्तु कभी भी एक साथ तीनों वेदों का बन्ध नहीं करता है । इसलिये हास्य- रति और शोक -अरति युगल और तीन वेद से विभज्यमान बाईस प्रकृतिक बन्ध छह प्रकार से होता है । वह इस प्रकार
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मिथ्यात्व, सोलह कषाय, तीन वेद में से कोई एक वेद, युगलद्विक में से एक युगल, भय और जुगुप्सा । इस प्रकार मोहनीय की बाईस प्रकृतियों का बन्ध मिथ्यात्वगुणस्थान में प्रति समय प्रत्येक जीव को होता है | ये बाईस प्रकृतियां किसी को हास्य-रति युक्त तो किसी को शोक- अरतियुक्त होती हैं । इस कारण युगलद्विक की विवक्षा से बाईस - प्रकृतिक स्थान दो प्रकार से होता है । तथा
यही हास्य-रतियुक्त बाईस का बन्ध किसी को पुरुषवेद के साथ, किसी को स्त्रीवेद के साथ तो किसी को नपुंसकवेद के साथ होता है । इसी प्रकार शोक - अरति युगल युक्त बाईस का बन्ध भी पुरुष, स्त्री या नपुंसक वेद के साथ होता है । जिससे बाईस का बन्ध एक समय अनेक जीवों की अपेक्षा और अनेक समय एक जीव की अपेक्षा मिथ्यात्वगुणस्थान में छह प्रकार का होता है ।
उक्त बाईस प्रकृतियों में से मिथ्यात्व को कम करने पर इक्कीसप्रकृतिक बन्धस्थान होता है । परन्तु यहाँ दो वेद में से एक वेद
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