Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १७,१८
यह दोनों विकल्प अयोगिकेवलीगुणस्थान के प्रथम समय से लेकर द्विचरम समय पर्यन्त होते हैं।
७. असाता का उदय, असाता की सत्ता । ८. साता का उदय, साता की सत्ता । यह दोनों विकल्प अयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय में होते हैं।
इस प्रकार वेदनीयकर्म के संवेध के आठ विकल्प जानना चाहिये। सुगम बोध के लिये जिनका ज्ञापक प्रारूप इस प्रकार है
बंध
उदय
सत्त्व
गुणस्थान
असाता
असाता
१ से ६ तक
असाता
साता
१ से ६ तक
साता
असाता
१ से १३ तक
साता
साता
१ से १३ तक
असाता
१४वें के द्विचरम समय तक
साता
X XXX
असाता
असाता
१४वें के चरम समय में
साता
साता
इस प्रकार से अभी तक अल्प कथनीय ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, गोत्र और अंतराय इन छह कर्मों के संवेध और उनके भंगों का कथन जानना चाहिये । अब बहुप्रकृतियों वाले शेष रहे मोहनीय और नामकर्म की उत्तरप्रकृतियों के संवेध का विचार करते हैं।
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