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________________ ४१ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १७,१८ यह दोनों विकल्प अयोगिकेवलीगुणस्थान के प्रथम समय से लेकर द्विचरम समय पर्यन्त होते हैं। ७. असाता का उदय, असाता की सत्ता । ८. साता का उदय, साता की सत्ता । यह दोनों विकल्प अयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय में होते हैं। इस प्रकार वेदनीयकर्म के संवेध के आठ विकल्प जानना चाहिये। सुगम बोध के लिये जिनका ज्ञापक प्रारूप इस प्रकार है बंध उदय सत्त्व गुणस्थान असाता असाता १ से ६ तक असाता साता १ से ६ तक साता असाता १ से १३ तक साता साता १ से १३ तक असाता १४वें के द्विचरम समय तक साता X XXX असाता असाता १४वें के चरम समय में साता साता इस प्रकार से अभी तक अल्प कथनीय ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, गोत्र और अंतराय इन छह कर्मों के संवेध और उनके भंगों का कथन जानना चाहिये । अब बहुप्रकृतियों वाले शेष रहे मोहनीय और नामकर्म की उत्तरप्रकृतियों के संवेध का विचार करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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