Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० सातावेदनीय का बंधविच्छेद तेरहवें सयोगिकेवलीगुणस्थान में और असातावेदनीय का छठे प्रमत्तसंयतगुणस्थान में होता है । किन्तु इन दोनों की सत्ता एवं उदय सभी-चौदहों गुणस्थान में संभव है। इस अपेक्षा से संवेध विकल्प निम्न प्रकार से जानना चाहिये
सातावेदनीय का उदय हो अथवा असातावेदनीय का और जिसका उदय हो उसी का बंध हो अथवा जिसका उदय हो उसका बंध न हो किन्तु इतर--दूसरी प्रकृति का बंध हो और सत्ता में साताअसाता वेदनीय दोनों हों तब उसके चार भंग. होते हैं तथा बंध के अभाव में अयोगि के चरम समय में दोनों वेदनीय में से जिसका उदय हो और उसी की ही सत्ता हो तो उसके दो भंग होते हैं। उसके अलावा शेषकाल में अयोगि के प्रथम समय से लेकर द्विचरम समय पर्यन्त वेदनीयद्विक में से चाहें किसी एक का उदय हो परन्तु सत्ता दोनों की हो तो उसके दो भंग होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर वेदनीय कर्म के आठ भंग हैं
१. असाता का बंध, असाता का उदय, साता-असाता की सत्ता ।
२. असाता का बंध, साता का उदय, साता-असाता दोनों की सत्ता।
यह दोनों विकल्प मिथ्यादृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त होते हैं। इसके बाद असातावेदनीय का बंध नहीं होता है।
३. साता का बंध, असाता का उदय, साता-असाता दोनों की सत्ता । ... ४. साता का बंध, साता का उदय, साता-असाता वेदनीय दोनों की सत्ता।
यह दोनों विकल्प मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय पर्यन्त संभव हैं। इसके बाद अयोगिकेवलीगुणस्थान में योग का अभाव होने से वेदनीय का बंध ही नहीं होता है ।
५. असाता का उदय, साता-असाता की सत्ता । ६. साता का उदय, साता-असाता की सत्ता।
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