Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा ह
८. तिर्यंचायु का उदय, मनुष्य तिर्यंचायु की सत्ता ।
६. तिर्यचायु का उदय, देव- तिर्यंचायु की सत्ता । ये तीनों विकल्प भी पहले से पांचवें गुणस्थान पर्यन्त होते हैं । क्योंकि किसी भी आयु का बंध होने के बाद तिर्यंच सम्यक्त्व आदि प्राप्त कर सकते हैं ।
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इस प्रकार तिर्यंचों के आयु सम्बन्धी नौ विकल्प जानना चाहिये । अब मनुष्य सम्बन्धी विकल्पों का निर्देश करते हैं । मनुष्यगति--सम्बन्धी विकल्प इस प्रकार हैं
१. मनुष्यायु का उदय, मनुष्यायु की सत्ता । यह विकल्प अयोगिकेवली गुणस्थान पर्यन्त होता है। क्योंकि मनुष्यों के चौदह गुणस्थान हो सकते हैं ।
२. परभवायु के बंधकाल में नरकायु का बंध, मनुष्यायु का उदय, नरक - मनुष्यायु की सत्ता, यह विकल्प मिथ्यादृष्टि के होता है । इसका कारण यह है कि अन्यत्र नरकायु का बंध नहीं होता है ।
३. तिर्यंचाय का बंध, मनुष्यायु का उदय और तिर्यंच - मनुष्यायु की सत्ता, यह विकल्प मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि के होता है, क्योंकि तिचायु का बंध प्रथम दो गुणस्थानों में ही होता है ।
४. मनुष्यायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और मनुष्य-मनुष्यायु की सत्ता, यह विकल्प भी आदि के दो गुणस्थानों तक ही होता है । क्योंकि मनुष्य को मनुष्यायु का बंध भी आदि के दो गुणस्थान तक ही होता है ।
५. देवायु का बंध, मनुष्यायु का उदय, देव- मनुष्यायु की सत्ता, यह विकल्प सातवें अप्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त होता है। क्योंकि देवायु का बंध तीसरे गुणस्थान को छोड़कर सातवें तक होता है ।
यह २ से ५ तक के चार विकल्प परभवायु के बंधकाल में होते हैं ।
उपरत बंधकालापेक्षा शेष चार विकल्प इस प्रकार हैं६. परभवायु का बंध होने के बाद मनुष्यायु का उदय, नरकमनुष्यायु की सत्ता ।
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