Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : १० ___मोहनीय के बिना सात के उदय में ग्यारहवें और बारहवें में तथा सात की सत्ता केवल बारहवें गुणस्थान में होने से सात की सत्ता में वेदनीय कर्म रूप एक प्रकृति का एक ही बन्धस्थान होता है ।
तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में उदय और सत्ता चार की होती है । अतएव तेरहवें गुणस्थान में चार का उदय तथा सत्ता में एक प्रकृति रूप वेदनीय का एक बन्धस्थान होता है और चौदहवें गुणस्थान में बन्ध का अभाव है।
उक्त समग्र कथन का दर्शक स्वामी एवं काल सहित प्रारूप पृष्ठ १७ पर देखिए।
मूल प्रकृतियों के उक्त संवेधों के गुणस्थानों और जीवस्थानों की अपेक्षा स्वामित्व विकल्प इस प्रकार जानना चाहिये____ गुणस्थानापेक्षा तीसरे के सिवाय पहले से लेकर सातवें इस तरह छह गुणस्थानों में जब आयु का बन्ध हो तब आठ का बन्ध, आठ का उदय, आठ की सत्ता तथा शेष काल में सात का बन्ध, आठ का उदय और आठ की सत्ता, इस प्रकार दो-दो भंग होने से कुल बारह तथा तीसरे, आठवें और नौवें गुणस्थान में सात का बन्ध, आठ का उदय और आठ की सत्ता, दसवें गुणस्थान में छह का बन्ध, आठ का उदय और आठ की सत्ता, ग्यारहवें गुणस्थान में एक का बन्ध, सात का उदय, आठ की सत्ता, बारहवें गुणस्थान में एक का बन्ध, सात का उदय और सात की सत्ता, तेरहवें गुणस्थान में एक का बन्ध, चार का उदय और चार की सत्ता एवं चौदहवें गुणस्थान में अबन्ध, चार का उदय, चार की सत्ता। इस तरह इन आठ गणस्थानों में प्रत्येक का एक-एक भंग होने से कुल आठ। इस प्रकार चौदह गुणस्थानों सम्बन्धी मूल कर्मों के कुल संवेध विकल्प १२+८= २० बीस होते हैं। ___जीवस्थानापेक्षा-जीवस्थानों के चौदह भेदों के नाम पूर्व में बताये जा चुके हैं। उनमें से संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त में सभी गुणस्थान मानें
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