Book Title: Panchsangraha Part 10
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा २
तक आयुकर्म का बंध संभव है उनमें शेष सात कर्म भी बंधते हैं । यही आशय 'आउम्मि अट्ठ' पद में गर्भित है ।
'मोहेट्ठसत्त' - अर्थात् जब मोहनीय कर्म का बंध होता हो तब आठ अथवा सात कर्म बंधते हैं । उक्त विकल्पद्वय का कारण यह है कि जिस समय आयुकर्म के साथ सभी कर्म बंधते हैं तब आठ और आयु का बंध न हो उस समय उसके बिना सात कर्मों का बंध होता है |
आयुकर्म का निरन्तर बंध नहीं होता, परन्तु भुज्यमान आयु के तीसरे आदि भाग शेष हों तभी होता है । मोहनीय कर्म का बंध नौवें गुणस्थान पर्यन्त निरन्तर होता है । तीसरे गुणस्थान को छोड़कर सातवें तक आयु का बंध हो तब उसके साथ आठ कर्म का और आयु बंध न हो तब उसके बिना सात कर्म का बंध होता है । मिश्र, अपूर्वकरण एवं अनिवृत्तिकरण इन तीन गुणस्थानों में आयु के बिना सात कर्मों का ही बंध होता है । इस प्रकार दोनों बंधस्थानों में मोहनीय के बंध का समावेश होता है। इसीलिये मोहनीय कर्म के बंधकाल में 'मोहेट्ठसत्त' - आठ और सात प्रकृतिक बंधस्थान के विकल्प का संकेत किया है ।
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तीसरा वेदनीयकर्म बंधता हो तब आठ, सात, छह या एक-इन चार बंधस्थानों में से किसी का भी बंध होता है । जिसका आशय यह है कि एक मात्र सातावेदनीय उपशान्तमोह आदि तीन गुणस्थान में, मोहनीय और आयु के बिना छह का दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में, मिश्र, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान में आयु के बिना सात तथा मिश्र के बिना आदि के सात गुणस्थानों तक जब आयु का बंध हो तब आठ और आयु-बंध न हो तब उसके बिना सात कर्म बंधते हैं । इन सभी बंधस्थानों में वेदनीय का बंध होता ही है ।
शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण, नाम, गोत्र और अंतराय कर्म का बंध होता हो तब छह, सात और आठ प्रकृतिक इस प्रकार तीन बंधस्थानों में से किसी का भी बंध होता है । इन पांचों कर्मों का बंध
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