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नं० मूल पाठ, रीका
भावार्थ
संसारी आयुष्यवंत है तथा सदाजी१/जीवेतिषा, जीव । बता रहता है इसलिए जीव चेतना
चंत है २ जीवत्थि. जीवास्ती !
असंख्यात प्रदेशों का समूह है तथा
रस्ता संसार में शरीर धारण करके काया कायतिवा काय
ऐसा कहलाता है ।
प्राणधारी है इस से प्राणींसासो ३ पाणतिवा, प्राण
स्वास लेता है
चतुर्थ नाम भूत याने सदा सर्वदा त्रि४ भूएतिवा भूत
काल जीव का जीव ही है
५ सत्तेतिवा
सत्व
| पांचमूनाम सत्व शुभाशुभ कर्मवन्त है
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६ विपतिवा विश Iों की तेवीस विषय का जाण है
[छट्टानाम बिन्नू याने विषयी पंच इन्द्रि
| सुख दुःख का वेदने वाला है इस से वेदक | सातवां नाम जीव का वेदक है
७/घेयातिवा सुख दुःख
चयताति| पदलों कीरचना करता है तथा अच्छा
चेतापुर८/चेयातिया चुरा रूप वर्ण पाता है इस से चयति
लानांचय
श्रादमा नाम है
कारी
जयति जना कर्मरूपशत्रुओं को जीत के जय करता जेयातिया ता. कर्म
है इसलिए नवमां नाम जेता है रिपूणां