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उपरोक्त तेबास नाम कहे ह और इसी प्रकार से अनेक नाम जीव के कर्म संयोग वियोगदि कारण से जानना द्रव्यतः एक है भावतः अनेक है असंख्यात प्रदेशी तो द्रव्य जीव है ओर उस के लक्षण गुणपोय भाव जीव है ।
॥ ढाल तेहिज॥ भाव तो पांच श्रीजिन भाख्या, त्यांरा स्वभाव जुदा जुदा दाख्या । उदय उपसम चायक जाणों, क्षयोपसमपरणामिक पिछाणो ॥ २६ ॥ उदय तो पाठ कर्म अजीव, त्यां रै उदय से निपना जीव, ते उदय भाव जीव कै ताम, त्यांरा अनेक जुवा
वा नाम ॥ २७ ॥ यतो होवे पाठ कर्म, जब तायक गुण निपजै पर्म । ते तायक गुण छै भाव जीव, ते उज्वल रहै सदीव ॥ २८॥ उपसमें छ मोहनीय कर्म एक, जीवरै निपजै गुण अनेक । ते उपसम भाव जीव छै ताम, त्यांरा पिणछै जुवा जुवा नाम ॥ २६ ॥ बे भाभरणी मोहनीय अन्तराय, यह च्यारूं कर्म क्षयोपसमथाय । तब उपजै क्षयोपसम भाव चोखो, ते भाव जीव निरदोखो ॥ ३० ॥ जीव परिणमें जिण २ भाव मांही, ते सगला छै न्यारा न्यारा वाही । पिण परिणामिक सारा छै ताम, जेहवा तेहवा परिणामिक