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बारंगणादे सिद्ध के सुखों से तुलना करे तो वे सुख उने पातीक सुखा के अनन्तवें भाग भी नहीं है क्योंकि देवताओं के सुख तो पुद्गलोक अनित्य है और सिद्ध के आतीक सुख सदा सर्वदा यकसा नित्य है, संसार के सुख तो पुद्गलीक और रोगीले हैं जैसे पाम रोगी को खाज अर्थात् कुचरना अत्यन्त अच्छा और मिष्ट लगे वैसे ही कर्म वस पुन्य के पुद्गलीक सुख जीव को श्रच्छे लगते हैं परंतु इन्ह सुखों से आतमा का कार्य सिद्ध कदापि नहीं होता है, मोह कर्म बस पुद्गलीक सुखों से जीव राजी होता है परंतु इन्ह सुखों में गृद्धी होके जीष पाप कर्मोपार्जन करि के नरक निगोदादि में दुःख भोगता है और मोक्ष के श्रातमीक सुखों से दूर होता है इस लिए यह सुख कुछ भी नहीं है असल सुख तो मुक्तिके हैं सो सदा सर्वदा येकसा अनन्ते हैं तो जन्म मरणरूप दावानल से अलग होके सिद्ध भगवन्त हुए हैं, जिन्होंने श्राएं ही कर्म अलग करिके आठ गुन प्रगट किये हैं सो कहते हैं। १-ज्ञानावरणीय कर्म क्षय होने से केवल ज्ञान । २-दरशनावरणीय कर्म क्षय होने से केवल दरशन । ३-घेदनीय कर्म क्षय होने से प्रातमीक सुख ।। ४-मोहनीय कर्म क्षय होने से शीतली भूत स्थिर प्रदेश तथा क्षा
यक समाकित। ५-नाम कर्म क्षय होने से अमूर्तीक भाष । ६-गौत्र कर्म क्षय होने से अगुरू लघू अर्थात् हल का भारी पंणां
रहित। ७-मंतराय कर्म क्षय होने से अनन्त वीर्य अंतराय रहित। . ८-आयुष्य कर्म क्षय होने से अटल अवगाहना।
उपरोक्त आठ गुनों सहित सिद्ध कर्मों से मुकाये जिसका नाम मोक्ष हे वे सिद्ध भगवंत कलकलीभूत संसार से. छुटकारा पाके