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(१६२) शिव रमणी के अनन्त सुन पाये हैं लो १५ प्रकार से सिद्ध होते हैं जिन्हों का नाम । १-तित्थ सिद्धा, अर्थात् साधू साध्वी श्रापक श्राविका मयी व्यार,
तीर्थ में से सिद्ध हुए। २-अण तित्थ सिद्धा, अर्थात् च्यारतीर्थ विना अन्य तीर्थी पण
में करणी करके केवलज्ञान दर्शन उपार्जन कर सिद्ध हुए । ३-तार्थंकर सिद्धा, अर्थात् तीर्थ थापके सिद्ध हुए। ४-अतीर्थकर सिद्धा, अर्थात् तीर्थ थापे विना सामान्य केवली
सिद्ध हुए। ५-स्वयंवुद्धि सिद्धा, अर्थात् किसी के उपदेश विना स्वयं प्रति' बोध पाके सिद्ध हुए। ६-प्रत्येक बुद्धि सिद्धा, अर्थात् किसी वस्तु को देख के प्रतिबोध
पाये सो सिद्ध हुए। ७-धुद्धिबोध सिद्धा, अर्थात् उपदेश सुनके संयम मार्ग अङ्गीकार 'करके सिद्ध हुंए। ८-स्वयं लिङ्गी सिद्धा, अर्थात् जैन साधू के लिङ्ग में सिद्ध हुए। ६-अन्य लिङ्ग सिद्धा, अर्थात् जैन विना अन्य लिङ्ग में सिद्ध हुए। १०-गृहस्थ लिङ्ग सिद्धा, अर्थात् गृहस्थी के लिङ्ग में सिद्ध हुए। ११-स्त्री लिङ्ग सिद्धा, अर्थात् स्त्री लिङ्ग में सिद्ध हुए। १२-पुरुष लिङ्ग सिद्धा, अर्थात् पुरुष लिङ्ग में सिद्ध हुए। १३-नपुंसक लिङ्ग सिद्धा, अर्थात् कृतनपुंशक लिङ्ग में सिद्ध हुए। १४-एक सिद्धा, अर्थात् एक समय में येक ही सिद्ध हुए । . १५-अनेक सिद्धा, अर्थात् एक समय में अनेक सिद्ध हुए। .
उपरोक्त पंदरह प्रकार सिद्ध हुप सो सर्व ज्ञान दरशन चारित्र और तप यह च्यारी सहित हुए हैं परंतु इन व्यारों के विना कोई भी सिद्ध नहीं हुए न होय.और न होवेगा, ज्ञान से सर्व म