________________
(१६७ सोपंध है , और सर्व कर्मों को क्षय करके कम रहित आत्म प्रदेश है सो मोक्ष है , तय, कोई तर्क करै तो फिर नव पदार्थ क्यों कहै जीव और अजीव ये दोही पदार्थ कहनेथे क्योंकि पुण्य पाप हैं सो कर्म है पातमां के साथ बंध है येतो पुद्गल परिणाम है। और पुद्गल है सो अंजीव है, तथा श्राश्रव है सो मिथ्या दर्शनादि रूप जीव परिणाम ह सो धातमा जीव द्रव्य है, पाश्रवको निरोध अर्थात् निवृत्ति रूप है, सो संवर है सोभी जीव द्रव्य है। देशतः कर्म तोडके देशतः जीव उज्वल होय सो निरजरो भी जीव पदार्थ है, तथा समस्त कौंको क्षय करके स्व सक्ती प्रगद करी कर्म रहित जीव होय सो मोक्ष है सांभीजीव पदार्थही है इस लिए जीव और अजीव ये दोही सद्भाव पदार्थ है बाकी सातो. को पदार्थ किसतरह कहे जिसका उत्सर शिष्यों को मोक्ष मार्ग में प्रवर्ना ने के निमित् प्रथक प्रथक पदार्थ बताये हैं, अनादि काल से संसारी जीवं पुद्गलों के साथ लोली भूतं हो रहा है जो जी.
के शुभ. पण उदय होते हैं उन्ह.पुगलों का नाम पुण्य पदार्थ है और जो असुभ पण उद्य पाते हैं उन्ह का नाम पाप पदार्थ है पुण्य पापका करता जीव है जिसको प्राथव पदार्थ कहते हैं
और अकरता. है सो जीव संवर पदार्थ, है, जीव जब कर्मों को निरजरता अर्थात् देशतः क्षय करता है इसलिए जीयका नाम निरजरा है, और जो पुण्य पाप जीवके बंधे हैं उनका नाम बंध पदार्थ है, सम्पूर्ण पुण्य पाप को क्षय करके जीव कर्म रहित होता है उसका नाम मोक्ष पदार्थ है. तात्पर्य पुण्य पाप बंध और
आश्रव यह संसार के कारण है इसलिए इन्हें तजके संघर निर. जरा जो माक्षके कारण है सो अझोकार करना चाहिए ॥ इति ।
॥दोहा । . केई भेष धारयां रा घट मझे। जीव अजीवरी खबर न काय ॥ तो पिण. गोला चलावै. गाला तणां । ते पिण शुद्ध न दीसै त्हाय ॥ ६ ॥ सर्व